Headlines
Loading...
देश भर में चुनाव जीतने का सबसे बड़ा औजार बना बुलडोजर राजनीति

देश भर में चुनाव जीतने का सबसे बड़ा औजार बना बुलडोजर राजनीति



नई दिल्ली । देश भर में जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जा रहा है, राजनीतिक दृष्टि से 'उल्टा-पुल्टा प्रदेश' और मध्य प्रदेश में अभूतपूर्व बुलडोजर राजनीति से गर्मी फैल रही है। यह विशालकाय मशीन हमारे नेताओं के लिए चुनाव जीतने का सबसे बड़ा चुनावी औजार बन गई है, जिससे किसी सरकार को विकास कार्यों के पैमाने पर नहीं, अपितु इस पैमाने पर सुदृढ़ माना जाता है कि उसके पास लोगों के घरों को तोड़ने के लिए कितने बुलडोजर हैं और इस तरह कानून के शासन को कानून द्वारा शासन में बदल दिया गया है, जिसकी अवधारणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दी, जिन्हें प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी द्वारा हालिया विधान सभा चुनावों में बुलडोजर बाबा का उपनाम भी दे दिया गया।



पार्टी ने इसे अपनाया और इसे कानून का भय पैदा करने के लिए अपराधियों और बलात्कारियों की अवैध संपत्तियों को तोडऩे के लिए प्रयोग में लाया गया। जिसकी लाठी, उसकी भैंस की बाहुबली राजनीति को अब उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी अपनाया जा रहा है, जहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दंगाइयों, महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने वाले और ङ्क्षहसा फैलाने वालों को दंड देने हेतु उनकी संपत्ति को बुलडोजर से नष्ट करने का आदेश दिया है और उन्हें लोग अब बुलडोजर मामा के नाम से पुकारने लगे हैं।

पिछले सप्ताह राम नवमी के अवसर पर खरगौन हिंसा में संलिप्त कथित दंगाइयों के 50 से अधिक घर तोड़े गए। शिवराज सिंह ने स्पष्ट किया 'बेटी की सुरक्षा में जो बनेगा रोड़ा, मामा का बुलडोजर बनेगा हथौड़ा'। इस बुलडोजर राजनीति को भाजपा के 2 हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं द्वारा अपनाया जा रहा है और विपक्षी दल इसे एक बड़ा विवाद बना कर इसे संविधान का मजाक बता रहे हैं। उनका कहना है कि भारत का बहुलवादी ढांचा राष्ट्रवादियों के खून-पसीने और आंसुओं द्वारा बनाया गया है और उसे अब ईंट दर ईंट तोड़ा जा रहा है। यह बाहुबली राजनीति हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए अस्वस्थकर है।

प्रश्न उठता है कि क्या राजनीतिक बाहुबल और या यूं कहें दादागिरी का प्रदर्शन गलत है? क्या यह कानून सम्मत और दंगाइयों के विरुद्ध एक प्रतिरोधक है? संकीर्ण राजनीतिक अर्थों में दंगाई कह सकते हैं कि यह उनकी निजता पर हमला है, उनकी सुरक्षा के लिए खतरा है और उनके विरुद्ध प्रतिशोध की भावना से की गई कार्रवाई है क्योंकि उन्हें राष्ट्रविरोधी कहा जा रहा है और इस तरह बाबा और मामा की सरकारें अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध असहिष्णुता का प्रदर्शन कर रही हैं। साथ ही उन्हें बिना मुकद्दमा चलाए कैसे दोषी ठहराया जा सकता है, बिना यह साबित किए कि आरोपी व्यक्ति ने अपने कार्यों के माध्यम से कानूनी अपराध किया है?

राहुल गांधी का कहना है, ''महंगाई और बेरोजगारी पर बुलडोजर चलाने की बजाय भाजपा का बुलडोजर घृणा और भय से भरा पड़ा है।'' गंभीर अपराधों के अपराधियों के विरुद्ध ऐसी कार्रवाई नहीं की गई, जैसी कि तोडफ़ोड़ की कार्रवाई करने वाले इन लोगों के विरुद्ध की जा रही है और इसका उद्देश्य बदला लेना है। किसी भी राज्य प्रशासन को प्रभावी प्रतिरोधक के रूप में ऐसे कदम उठाने का नैतिक अधिकार नहीं है।

यह सच है कि हमारी न्यायिक प्रक्रिया में बहुत समय लगता है और मुकद्दमे घोंगा चाल से आगे बढ़ते हैं, किंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि कानून अपने हाथ में लिया जाए। इससे कानून और व्यवस्था की स्थिति चरमरा जाएगी और कानून प्रवर्तन एजैंसी ढह जाएगी। एक व्यक्ति कोई भी ऐसा कार्य कर सकता है जो कानून द्वारा निषिद्ध है किंतु राज्य कानून द्वारा स्वीकृत कार्रवाई ही कर सकता है। यह इस बात को दर्शाता है कि यह राज्य तंत्र की शक्ति से व्यक्ति को सुरक्षा देने के लिए कानून के शासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है और किसी भी लोकतंत्र में कानून की सम्यक प्रक्रिया अपनाए बिना लोगों को दंडित नहीं किया जा सकता।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा दोषी घोषित किए जाने से पूर्व उसकी संपत्ति को कैसे ढहाया जा सकता है। यदि सरकार अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर न्याय करे तो फिर न्यायालयों का क्या काम है। सरकार को न्यायालय और न्यायाधीश के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए। अपराधियों के मन में भय की भावना पैदा करने की बजाय कानूनों को सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए, उनको नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

राज्य सरकार ने अपने बचाव में कहा कि सरकारी भूमि पर बने अवैध ढांचों को ढहाया गया है और ये ढांचे ऐसे लोगों के थे जिन्होंने लोक व्यवस्था को भंग किया और दंड के रूप में उन्हें गिराया गया है। उन्होंने गरीब और अनुसूचित जातियों के घरों में आग लगाई फिर उनके विरुद्ध कार्रवाई क्यों न की जाए? क्या जिन लोगों ने उन्हें परेशान किया उनके विरुद्ध बुलडोजर नहीं चलाए जाने चाहिएं? यही नहीं, यह कार्रवाई कानून की विभिन्न प्रासंगिक धाराओं के अंतर्गत की गई और ऐसे मामलों में न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि आरोपियों ने लोक व्यवस्था भंग की और सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया। यह भविष्य के लिए प्रतिरोधक के रूप में भी कार्य करेगा और एक सुदृढ़ नेता के रूप में हमारे नेताओं की छवि बनाएगा ताकि विकासोन्मुखी प्रशासन चलाया जा सके।

यही नहीं, उच्चतम न्यायालय ने 2009 में एक स्वत: संज्ञान निर्णय में दंगाइयों को सामूहिक दंड के रूप में संपत्ति को नष्ट करने की बात कही थी। न्यायालय ने कहा था यदि आंदोलन और विरोध प्रदर्शन में संपत्ति का नुक्सान होता है और आप वहां पर उपस्थित हैं तो आपकी संपत्ति को यह बताए बिना कि आप किस तरह इसके लिए जिम्मेदार थे, जब्त किया जा सकता है। तथापि बुलडोजर राजनीति में राजनीतिक सोच में बदलाव आया है, जिसके माध्यम से सरकार ने नागरिकों के उत्तरदायित्वों को राज्यों के मूल कत्र्तव्यों, भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा, नागरिकों और समाज के प्रति कर्तव्य, भाईचारे की भावना का पालन, समावेशी संस्कृति की रक्षा और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा से जोड़ दिया है, ताकि वह सार्वजनिक क्षेत्र में उपद्रव करने के लिए अपने अधिकारों की आड़ न लें।

फलत: ऐसे वातावरण में, जहां पर सुशासन और जवाबदेही सरकार के मानक हों, यह बात तर्कसम्मत है कि जब राज्य नागरिकों से कहता है कि उनके भी राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व और कत्र्तव्य हैं, यह जमीनी स्तर पर समाज को सुदृढ़ करने का एक महत्वपूर्ण अवयव है। स्थिति ऐसी बन गई है कि जैसे को तैसे की इस राजनीति के कारण भाजपा के अनेक मुख्यमंत्री इस बाहुबल की राजनीति के क्लब में शामिल होना चाहते हैं। इनमें असम के हेमंत बिस्वा से लेकर कर्नाटक के बोम्मई शामिल हैं।

यह सच है कि आप राज्य के कार्यों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं, किंतु आप दंगा फैलाकर सरकारी संपत्ति को नष्ट नहीं कर सकते क्योंकि हर सरकारी संपत्ति लोगों की ही है। इसलिए देश को सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने की शक्ति और कत्र्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों के बीच संतुलन बनाना होगा।