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नई दिल्ली : अमेरिका से कितनी संख्या में खरीदे जाएं प्रीडेटर ड्रोन, वहीं इसका निर्धारण करने के लिए सरकार ने बनाई उच्च स्तरीय समिति।
नई दिल्ली। सरकार रक्षा के क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' पर जोर दे रही है। वह देश में ही हथियारों के निर्माण को बढ़ावा देने के साथ ही स्वदेशी रक्षा उपकरणों की खरीद भी कर रही है। इसी नीति पर बढ़ते हुए विदेशों से रक्षा उपकरणों के आयात में लगातार कटौती की जा रही है। अब रक्षा मंत्रालय ने वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति का गठन किया है जो निर्धारित करेगी कि अमेरिका से कितनी संख्या में प्रीडेटर ड्रोन की खरीद की जाएं।
वहीं दरअसल भारत मिसाइलों और स्ट्राइक क्षमता से लैस उच्च ऊंचाई वाले 30 प्रीडेटर ड्रोन की खरीद करने की योजना बना रहा था। इन ड्रोन को तीनों सेनाओं में शामिल किया जाना था। इस सौदे को लेकर बातचीत अंतिम चरण में थी। सूत्रों ने एएनआई को बताया कि प्रीडेटर ड्रोन की संख्या तय करने के लिए इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ मुख्यालय के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है।
वहीं दरअसल सरकार का मानना है कि जब तक देश में इस तरह के उपकरणों का विकास नहीं किया जाता तब तक तीनों सेनाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस ड्रोन की खरीद की जानी चाहिए। सूत्रों ने कहा कि देश की तीनों सेवाओं के लिए इन ड्रोनों की आवश्यकताएं हैं। इन ड्रोन का इस्तेमाल निगरानी के साथ दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने के लिए भी किया जा सकता है।
वहीं अमेरिका से 30 प्रीडेटर ड्रोन की अनुमानित लागत तीन अरब डालर बताई जाती है। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा पहली बार है जब अमेरिका किसी गैर नाटो सहयोगी देश को ये ड्रोन बेच रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की 2017 में अमेरिकी यात्रा के दौरान इस रक्षा सौदे की घोषणा की गई थी। हाल ही में स्वदेशी हथियार प्रणालियों को तरजीह देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर रक्षा मंत्रालय की ओर से आयात किए जाने वाले कई रक्षा सौदों को या तो रद्द कर दिया गया था या इन पर रोक लगा दी गई थी।