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नई दिल्ली : वात्सल्य से वंचित बचपन को रेखांकित करती है 'पिंजरा-द केज', वहीं लघु कहानियों में संजोया अनछुआ बचपन।
नई दिल्ली। बचपन को मानव के जीवन का सबसे सुंदर समय माना जाता है, लेकिन कुछ ऐसे अभागे बच्चे होते हैं, जिनके सिर पर अपनों का साया नहीं रहता। वे अपनों के प्यार-दुलार और देखभाल से वंचित हो जाते हैं। ऐसे हालात के मारे बच्चों का भविष्य अंधकारमय जान पड़ता है। हालांकि ऐसे बच्चों की देखभाल और उनका भविष्य संवारने के लिए अनाथालय, बालगृह और संस्थाएं काम करती हैं, लेकिन ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिससे यह जाहिर होता है कि वे इन जगहों पर पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं।
वहीं यही कारण है कि बच्चों के शोषण, अत्याचार, तस्करी और उनके अधिकारों के हनन से जुड़े मामले अक्सर ही सामने आते रहते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कई सख्त कानून बने हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं।
वहीं पुस्तक 'पिंजरा : द केज' ऐसी ही सच्ची घटनाओं की सरकारी जांच रिपोर्ट पर आधारित है। प्रियंक कानूनगो और दीपक उपाध्याय की यह पुस्तक छोटी-छोटी कहानियों के जरिये ऐसे लोगों के प्रति जागरूक करती प्रतीत होती है, जो बच्चों के नाम पर चिल्ड्रेन होम खोलकर उसमें अनैतिक काम करते हैं और पैसे कमाने के लिए बच्चों का उपयोग करते हैं।
वहीं पुस्तक में कुल नौ छोटी-छोटी कहानियों 'पिंजरा : द केज', 'टूलकिट पापा', 'नीली साड़ी वाली दीदी', 'ट्रेनिंग बिजनेस', 'मुक्ति', 'धर्म का दास', 'काला राक्षस', 'टपकती छत' और 'मोबाइल राक्षस' को संकलित किया गया है। इन कहानियों के माध्यम से यह जागरूक करने का प्रयास किया गया है कि बच्चों का किस तरह शोषण किया जाता है। उनको किस तरह अपने फायदे के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। इसमें कई जगहों पर अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं के शब्दों का भी उपयोग किया गया है। पुस्तक पठनीय और भाषा सुबोध है।