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आखिर क्यों डॉ. हेडगेवार को करनी पड़ी RSS की स्थापना? जहां व्यक्ति पूजा है निषेध
Rastriya Savam Sevak Sangh : आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पितामह डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती है। 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में उनका जन्म हुआ था और 21 जून 1940 में नागपुर में उनका निधन हो गया था। बचपन से ही वे क्रांतिकारी प्रवृति के थे। उनके मन में अंग्रेज शासकों से घृणा थी। हेडगेवार अपने जीवन में बाल गंगाधर तिलक और सुभाष चंद्र बोस के काफी करीबी रहे। महात्मा गांधी के साथ भी वो देश की राजनीति और भविष्य पर चर्चा किया करते थे। नेताजी के साथ तो उन्होंने संघ के साथ मिलकर नए भारत के निर्माण पर चर्चा भी की।
डॉ. हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर में पंडित बलिराम पंत के घर में हुआ। बचपन से ही उनके मन में ये सवाल उठता था कि आखिर हम गुलाम क्यों हैं? साल 1898 की बात है, जब एक दस साल का लड़का रानी विक्टोरिया की राज्यारोहन के पचासवीं जयंती पर बांटे गए मिठाइयों को यह कहते हुए कूड़ेदान में फेंक देता है कि हम विदेशी राज्य की खुशियां क्यों मनाएं। वहीं लड़का बाद में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार के नाम से जाना गया। बचपन से ही राष्ट्र के नाम पर मर मिटने की चाह ने हेडगेवार को अपनी उम्र से बड़ा और परिपक्व बना दिया। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उस वक्त पूरे देश में आवाज बुलंद हो रही थी। 1905 के बंग-भंग विरोधी आंदोलन का दमन करने के लिए अंग्रेजों ने वंदे मातरम के नारे पर पाबंदी लगा दी। लेकिन नागपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे के मन में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा धीरे-धीरे विद्रोह का रूप ले रही थी। 1907 में स्कूल का निरीक्षण करने जैसे ही एक अंग्रेज स्कूल में दाखिल हुए तो उनका स्वागत स्कूल में वंदे मातरम के उदघोष से हुआ। धीरे-धीरे ये नारा स्कूल की हर क्लास में यही नारा गूंजने लगा। महज 15 साल की उम्र में स्कूल के निरीक्षक के सामने क्लास में केशव ने वंदे मातरम का नारा लगवा दिया था। जिस पर प्रधान अध्यापक ने नाराज होकर उन्हें स्कूल से निकाल दिया था। बाद में दूसरे स्कूल में उन्होंने दाखिला लेकर शिक्षा पूरी की।
हेडगेवार चाहते थे कि एक ऐसा संगठन बने जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़े। वो हिन्दू समाज की जड़ों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक और दार्शनिक स्तर पर मजबूत रहे। कांग्रेस में व्यक्तिवाद, व्यक्ति पूजा डॉ. केशव के लिए चिंता का विषय था। इसलिए उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। उनका मानना था कि व्यक्ति आज है कल नहीं होगा। इसलिए आदर्श व्यक्ति न होकर विचार और सिद्धांतों को होना चाहिए क्योंकि वो सदैव जीवित रहेगा। इस विचार ने एक नए संगठन की नींव रख दी।
एक मजबूत राष्ट्र के लिए डॉ. हेडगेवार की सोच स्वाभिमानी और संगठित समाज के निर्माण की थी। इसी सोच के साथ 1925 में विजय दसमी के दिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की स्थापना की गई। 1925 के साल और सितंबर की 27 तारीख को मुंबई के मोहिते के बाड़े नामक जगह पर डॉ. हेडगेवार ने आरएसएस की नींव रखी थी। ये संघ की पहली शाखा थी जो संघ के पांच स्वयंसेवकों के साथ शुरू की गई थी।
1928 में गुरु पूर्णिमा के दिन से गुरु पूजन की परंपरा शुरू हुई। जब सब स्वयं सेवक गुरु पूजन के लिए एकत्र हुए तब सभी स्वयंसेवकों को यही अनुमान था कि डॉक्टर साहब की गुरु के रूप में पूजा की जाएगी। लेकिन इन सारी बातों से इतर डॉ. हेडगेवार ने संघ में व्यक्ति पूजा को निषेध करते हुए प्रथम गुरु पूजन कार्यक्रम के अवसर पर कहा, “संघ ने अपने गुरु की जगह पर किसी व्यक्ति विशेष को मान न देते हुए परम पवित्र भगवा ध्वज को ही सम्मानित किया है।