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यूपी : इंग्लैंड के पब में मिली आलम की खोपड़ी अजनाला में क्रूरता का है साक्षी, वहीं बलिदानी का सिर ले गए थे अंग्रेज।

यूपी : इंग्लैंड के पब में मिली आलम की खोपड़ी अजनाला में क्रूरता का है साक्षी, वहीं बलिदानी का सिर ले गए थे अंग्रेज।

                           Vinit Jaishwal City Reporter

वाराणसी। अमृतसर के अजनाला में अंग्रेजों की क्रूरता की साक्षी है इंग्लैंड के एक पब में मिली हवलदार आलम बेग की खोपड़ी। इसे अंग्रेज अधिकारी ग्रिसली ट्राफी बनाकर ब्रिटेन की महारानी को भेंट करने के लिए ले गए थे। इसे बाद में शराबियों द्वारा उपहास कराने के उद्देश्य से एक पब में रख दिया गया था। उस खोपड़ी की आंख की कोटर में एक पर्ची पर लिख रखा था उस वीर देशभक्त सिपाही का ब्रिटिश सल्तनत के गद्दार के रूप में परिचय।

वहीं गजब का संयोग कि वर्ष 2014 में ही इधर अजनाला में उस अभागे कुएं का पता चला उधर ब्रिटिश इतिहासकार प्रो. किम ए. वगनर के हाथ आलम की खोपड़ी लगी। फिर तो उन्होंने शोधकर उसका पूरा इतिहास ही नहीं निकाला, एक पुस्तक भी लिख डाली। हवलदार आलम बेग नामक ब्रिटिश सेना का भारतीय सिपाही उन 500 सैनिकों में शामिल था जो मियां मीर (अब पाकिस्तान में) पोस्ट पर तैनात थे।

वही 1857 के विद्रोह में जब ये सैनिक पूर्वी पंजाब की ओर बढ़ रहे थे, अंग्रेजी फौज ने उनमें से 218 सैनिकों को जम्मू में रावी नदी के तट पर गोलियों से भून दिया और 237 को अजनाला में लाकर गोली मार दी, 14 को जिंदा ही कुएं में दफना दिया। इनमें से इन जांबाजों का मुखिया कानपुर निवासी आलम बेग अंग्रेजों की पकड़ से भागने में सफल रहे। 

वहीं अंग्रेजों ने बाद में उन्हें कानपुर से पकड़ लिया और सियालकोट ले जाकर तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया। इसके बाद उनकी खोपड़ी को पानी में उबालकर चमड़ी उतारी और ग्रिसली ट्राफी बनाकर ब्रिटेन की महारानी के लिए इंग्लैंड ले गए। बाद में एक पब में सजा दिया।

वहीं दूसरी तरफ़ वर्ष 2014 में इंग्लैंड के एसेक्स शहर में स्थित लार्ड क्लाइड पब बिकने लगा तो वहां रखी इस खोपड़ी को ऐतिहासिक जान पब मालिक ने लंदन के क्वीन मैरी विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. किम ए. वगनर को दे दिया। प्रो. वगनर को उस खोपड़ी की आंख के कोटर में एक पर्ची मिली। 

वहीं उसमें उस वीर सैनिक की पूरी विद्रोह गाथा लिखी थी। उसे पढऩे के बाद उन्होंने उस पर स्वयं भी शोध किया। अजनाला पर चल रहे शोध के बारे में पता किया और पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. सहरावत से संपर्क स्थापित किया।

वहीं अजनाला में मिले कंकालों पर हुए शोध टीम में शामिल बीएचयू के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि प्रो. वगनर भारतीय इतिहास से काफी प्रभावित हैं। वह यहां आलम की खोपड़ी लेकर आएंगे और उसका अंतिम संस्कार धार्मिक रीति-रिवाज से किया जाएगा।

वहीं यह आलम बेग की खोपड़ी है जो बंगाल की 46वीं इन्फैंट्री में हवलदार थे। इनको रेजीमेंट के कई लोगों के साथ अंग्रेज सरकार ने तोप से उड़ा दिया था। ये 1857 के विद्रोह के सबसे बड़े बागी थे। इन्होंने अपने गिरोह के साथ मिलकर डा. ग्राहम (जो अपनी पुत्री के साथ बग्घी में जा रहे थे) को निर्दयतापूर्वक मार डाला। इनके अगले शिकार मि. हंटर थे, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ उसी रास्ते से जा रहे थे।

बता दें कि वहीं उन्होंने मि. हंटर को पत्नी और बच्चों सहित नृशंसतापूर्वक मार डाला। आलम बेग की उम्र 32 वर्ष के आस-पास थी। पांच फीट, साढ़े सात इंच ऊंचाई थी, यह कहीं से भी कुरूप नहीं हैं। इस खोपड़ी को कैप्टन एआर कैस्टेलो यहां ले आए जो कि ड्यूटी पर थे जब आलम बेग को सियालकोट में उड़ाया गया।