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यूपी : वाराणसी में तुलसी घाट से मस्तक पर धारण कर संकट मोचन मंदिर तक लाई गई हनुमान चालीसा।
वाराणसी। किसी सामान्य सांगीतिक आयोजन की संकुचित सीमाओं का बंधन तोड़कर श्री संकट मोचन संगीत समारोह। काशी के सबसे बड़े संपूर्ण सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। अपनी यात्रा के शतकीय सोपान से महज एक कदम पीछे रह गए इस गरिमामय महोत्सव में सोमवार को अंतिम निशा में देश की सर्वाधिक पुरानी हनुमान चालीसा की भव्य पीठिका प्रतिष्ठा की गई।
वहीं 388 वर्ष पुरानी हनुमान चालीसा की पांडुलिपि को तुलसी घाट से मस्तक पर धारण कर संकट मोचन मंदिर तक लाया गया। पांडुलिपि की शोभायात्रा की अगुआई नगर के डमरू दल ने की। धरोहरी थाती के संरक्षण के निमित्त आयोजित इस विशेष सत्र में संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र ने पूजन व आरती के साथ पांडुलिपि का पीठिका रोहण किया। इसी के साथ एक और धरोहर तुलसी घाट स्थित गोस्वामी तुलसी दास की शेष स्मृतियों के संग्रहण कोष का अभिन्न अंग बन गई।
वहीं पांडुलिपियों की विशेषज्ञ प्रो. उदय शंकर दुबे के अनुसार हस्तनिर्मित कागज पर काली रोशनाई से अंकित हनुमान चालीसा की यह दुर्लभ प्रति गोस्वामी तुलसी दास के किसी शिष्य द्वारा वर्ष 1734 में अंकित की गई है। उन्होंने करीब एक दशक पूर्व काफी जीर्ण अवस्था में यह पांडुलिपि प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र को भेंट की थी। प्रो. मिश्र ने इसे इटैलियन पार्चामेंट तकनीक से संरक्षित कराया। अब यह अगले कई सौ वर्षों के लिए संरक्षित हो चुकी है।
वहीं इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर में श्री हनुमान जी की दिव्य प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई थी। इस मूर्ति में हनुमान जी दाएं हाथ से भक्तों को अभयदान दे रहे हैं और बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सूर्योदय के समय यहां हनुमान जी की विशेष आरती होती है।