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यूपी : नीति आयोग के सर्वे में चंदौली देश के शीर्षस्थ जनपदों में, वहीं मूल्यांकन सर्वेक्षण में विशेषज्ञों की टीम पक्षों को परखा।

यूपी : नीति आयोग के सर्वे में चंदौली देश के शीर्षस्थ जनपदों में, वहीं मूल्यांकन सर्वेक्षण में विशेषज्ञों की टीम पक्षों को परखा।

                             Kiran Yadav City Reporter

चंदौली। आकांक्षी जनपद योजना में चिह्नित चंदौली जनपद विकास योजनाओं के संयुक्त मूल्यांकन में शीर्षस्थ जनपदों में शामिल किया गया है। नीति आयोग द्वारा कराए गए मूल्यांकन सर्वेक्षण में विशेषज्ञों की टीम ने प्रत्येक क्षेत्र में जनपद के विकास की सराहना की है। इस टीम में बीएचयू, आइआइटी बांबे और विवेकानंद एजुकेशन सोसाइटी इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी के प्रोफेसर शामिल थे।

वहीं वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नीति आयोग के तत्वावधान में देश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों के सर्वांगीण विकास हेतु आकांक्षी जनपद योजना आरंभ किया था। इसके अंतर्गत देश के 117 जनपद चयनित किए गए थे। इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जिलाधिकारी को प्रभारी बनाए गए हैं तथा मुख्य विकास अधिकारी को प्रमुख सहयोगी।

वहीं टीम में शामिल बीएचयू के डा. मनीष अरोरा, आइआइटी बांबे के प्रो. आशीष पांडेय, विवेकानंद एजुकेशन सोसाइटी इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट की प्रो. निशा पांडेय (प्रोफेसर और चेयरपर्सन, यूनुस सोशल बिजनेस सेंटर) ने पांच प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों स्वास्थ्य व पोषण, शिक्षा, कृषि व जल संसाधन, वित्तीय समावेशन व कौशल विकास तथा बुनियादी ढांचों के आधार पर तमाम योजनाओं को लागू करने के साथ लक्षित विकास के बिंदुओं पर सर्वेक्षण किया।

वहीं दूसरी तरफ़ टीम में शामिल डा. अरोरा ने बताया कि टीम ने सबसे पहले जिलाधिकारी संजीव सिंह व मुख्य विकास अधिकारी अजीतेंद्र नारायण से बात की। सीडीओ ने जिले के विकास के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला। इसके बाद हुए सर्वेक्षण में देखा गया कि औद्योगिक-सामाजिक उत्तरदायित्व के माध्यम से भी सरकारी विद्यालयों के बुनियादी ढांचों को मजबूत किया जा रहा है। छात्रों का नामांकन, उपस्थिति और सीखने का स्तर भी बेहतर पाया गया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं, बच्चों, वयस्कों में दवाओं का वितरण व सेवन, कोविड टीकाकरण, अन्य जरूरी टीके भी प्रभावी रूप से पाए गए।

वहीं टीम ने पाया कि कृषि उत्पादन के मामले में सुधार की संभावनाओं को गंभीरता से लिया गया है। काला चावल की खेती बढ़ी है। वर्ष 2018 में जहां केवल 30 किसान ही इसकी खेती करते थे, वहीं अब 1000 से भी अधिक किसान इससे जुड़े हैं, खेती के साथ इसका व्यापार भी कर रहे हैं। आइ कृषि उत्पादन संगठन नाबार्ड के साथ मिल कर काम कर रहे हैं। नतीजा, काला चावल अब खाड़ी देशों के दस्तरखान तक अपनी सुगंध बिखेर रहा है।