UP news
यूपी : वाराणसी में दो दिनों में ही आर्टिफिशियल फेफड़े सफेद से हुए धुंधले, वहीं अस्सी घाट पर देख सकते हैं वायु प्रदूषण की स्थिति।
वाराणसी। अस्सी घाट पर लगाए गए फिल्टर युक्त कृत्रिम फेफड़े 48 घंटे में ही धुंधले होने लगे हैं। वहीं चौथे दिन यानी बुधवार को इस आर्टिफिशियल फेफड़ का रंग भूरा होने लगा है। इसका अर्थ यह है कि इंसान का भी फेफड़ा वाराणसी में वायु प्रदूषण की वजह से कहीं अधिक प्रभावित हो रहा है।
वहीं केयर फार एयर संस्था की ओर से सानिया अनवर ने बताया कि अस्सी घाट पर फेफड़े का सफेद से बदलता हुआ रंग वायु प्रदूषण की कहानी कह रहा है। स्वच्छ माने जाने वाले अस्सी घाट पर प्रदूषण का बुरा हाल इन दिनों नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र की ह्रदय स्थली अस्सी घाट पर वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक नजर आ रही है।
वहीं कृत्रिम फेफड़ों का केवल 48 घंटों में ही बुरा हाल हो गया है। सफेद से धुंधला हुआ रंग अब चौथे दिन भूरा होने की ओर है। राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्य योजना असफल होने की वजह से विधिक बाध्यता और ठोस लक्ष्य के साथ समय सीमा तय किये जाने की जरुरत वायु प्रदूषण के लिए कार्यरत संस्था की ओर से बताई गई है।
वहीं क्लाइमेट एजेंडा द्वारा वाराणसी के स्वच्छ समझे जाने वाले अस्सी घाट पर स्थापित किये गए उच्च क्षमता वाले फ़िल्टर युक्त कृत्रिम फेफड़े महज दो दिन के अंदर धुंधले हो गए। आम जन में वायु प्रदूषण की समझ पैदा करने के उद्देश्य से इस कृत्रिम फेफड़े की प्रदर्शनी स्थापित की गयी है।
वहीं जिसे रविवार को ही शहर के जाने माने चिकित्सक डॉ. आर एन बाजपेई, पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान के निदेशक डॉ. ए एस रघुवंशी और योगिराज पंडित विजय प्रकश मिश्रा ने क्लाइमेट एजेंडा की निदेशक एकता शेखर के साथ स्थापित किया था। देखना यह था कि शहर के सबसे साफ़ माने जाने वाले अस्सी घाट पर प्रदूषण के बारे में प्रशासनिक दावों के पीछे आखिरकार सच्चाई क्या है।
वहीं काशी की हवा में मौजूद ज़हरीले प्रदूषण के बारे में क्लाइमेट एजेंडा की निदेशक एकता शेखर ने कहा "महज़ चार दिन पहले ही स्थापित किये गए उच्च क्षमता वाले फिल्टर युक्त सफेद कृत्रिम फेफड़े का धुंधला (ग्रे) हो जाना प्रशासनिक दावों की कलई खोलता है। भीषण गर्मी के समय जबकि प्रदूषण का स्तर स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है, ऐसे समय में शहर के स्वच्छतम क्षेत्र की हालत पूरे शहर के वायु प्रदूषण के आंकड़ों की पोल खोलती है।
वहीं महज दो दिनों के भीतर इस कृत्रिम फेफड़े का धुंधला हो जाना यह प्रमाणित करता है कि वाराणसी में वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति बनी हुई है। हालिया जारी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के अधिकांश शहर ऐसे ही स्वास्थ्य आपातकाल से गुजर रहे हैं, जहां राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्य योजना पूर्ण रूप से असफल हो चुकी है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय कार्ययोजना का लापरवाही भरा अनुपालन वायु प्रदूषण के विषय पर प्रशासन का गंभीर ना होना चुनौती के समान है।
वहीं वाराणसी में बीएचयू स्थित सर सुंदर लाल अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ओम शंकर ने कहा कि "हम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में यू ही नहीं शामिल हैं। महज दो दिनों में कृत्रिम फेफड़ों का ग्रे हो जाना साबित करता है कि शहर और आस पास रहने वाले लोगों का दिल और फेफड़ा वायु प्रदूषण की जड़ में है। बेहद जरूरी है कि इसे एक स्वास्थ आपातकाल मानते हुए जरूरी कदम उठाए जाएं।
वहीं महज दो दिनों में कृत्रिम फेफड़ों के धुंधले हो जाने को एक चौकाने वाली घटना बताते हुए शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक और श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. आर एन वाजपेई ने कहा कि ''अस्सी अब तक शहर में सबसे स्वच्छ जगहों में शामिल माना जाता था। महज 48 घंटे में कृत्रिम फेफड़े का ग्रे हो जाना आम जनता के स्वास्थ्य के लिए एक खतरनाक स्थिति मानी जानी चाहिए।
वहीं यह अब बेहद जरुरी हो गया है कि पर्यावरण की बेहतरी के लिए परिवहन को प्रमुख रूप से स्ववच्छ बनाया जाए और सभी विभाग मिल कर स्ववच्छ वायु कार्ययोजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करें।