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यूपी : वाराणसी में देश भर से आईं गणिकाओं ने बाबा महाश्मशाननाथ दरबार में लगाई नृत्य संगीत से हाजिरी।
वाराणसी। मणिकर्णिकाघाट पर महाश्मशान नाथ के शृंगार महोत्सव की अंतिम निशा का। वासंतिक नवरात्र की सप्तमी के मान- विधान के तहत देशभर से जुटीं गणिकाओं ने फूल और गुगुल-लोबान की सुवास से मह-मह परिसर में बाबा को नृत्य-संगीत से भावांजलि समर्पित की। होठों पर गीत, भीगी पलकें और इस जीवन से मुक्ति और मोक्ष की मनोकामना उनके चरणों में रख दी।
वहीं काशी का महाश्मशान शुक्रवार को इस राग-विरागी उत्सव का साक्षी बना। शव को चितारूढ़ करने के समय उठा करूण क्रंदन हृदय को व्यथित कर रहा था, ठीक उसी समय महाश्मशान के अधिष्ठाता देव श्मशाननाथ की अभ्यर्थना में प्रस्तुत नृत्य और संगीत के समवेत नाद वंदन से मुदित मन। यह विरोधाभासी दृश्य काशी के इस दर्शन का प्रतिनिधित्व कर रहा था कि जीवन और मृत्यु दोनों ही मोक्ष नगरी में वंदनीय हैैं। शिव व शव किसी भी रूप में हों, सदा-सर्वदा अभिनंदनीय हैैं।
वहीं दूसरी तरफ़ महोत्सव की तीसरी शाम बाबा की फूलों से झांकी सजाई गई। पंचमकार का भोग लगा कर तंत्रोक्त विधि से आरती की गई और महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश समेत देश भर से आईं गणिकाओं ने हाजिरी लगा कर संगीत आराधना का शुभारंभ किया। वास्तव में बाबा का मंदिर स्वयंभू कहा जाता है। राजा मानसिंह जब काशी आए तो बाबा महाश्मशाननाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
वहीं मंगल कार्य के बाद गीत-भजन की परंपरा निर्वाह की बात आई तो कोई कलाकार आने को तैयार न हुए। यह जानकारी गणिकाओं को मिली तो डरते -डरते राजा मानसिंह तक अपनी सहमति का संदेश भेजवाया। प्रसन्न मन से राजा मानसिंह ने गणिकाओं को आमंत्रित किया तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इसमें गणिकाएं महाश्मशानेश्वर से नारकीय जीवन से मुक्ति की कामना करती हैैं। इसके लिए कई गणिकाएं चार दशक से लगातार आ रही हैैं। इसके लिए किसी तरह के आमंत्रण का भी इंतजार नहीं रहता।
वहीं मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर के मुताबिक भव्य भंडारा, भजन-कीर्तन के बाद अंतिम निशां में विभिन्न जिलों से आई नगरवधुओं ने भगवान को रिझाने के लिए एक से एक नृत्य प्रस्तुत किया। जलती चिताओं के सामने शिव को साक्षी मानकर नगरवधुएं देर रात्रि नृत्य करती रहीं। मान्यता अनुसार श्मशान पर हाजरी लगाने से दोबारा जन्म में उन्हें ऐसी जिंदगी से मुक्ति मिलती है।
वहीं इस कार्यक्रम में भाग लेने आई अधिकांश नगरवधूओं ने कहा कि शरीर बेचकर और नाचकर जीवन चलाने वालों को हमारा समाज स्वीकार नहीं करता। इसलिए ऐसी जिंदगी से मुक्ति के लिए जलती चिताओं के बीच नृत्य के जरिए पूरी रात महादेव की आराधना करते हैं। पूरा घाट भक्तों से पटा रहा। बढ़ती भीड़ को देखते हुए काफी संख्या में सुरक्षा बल तैनात रहे।