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यूपी : वाराणसी संकटमोचन संगीत समारोह में रति और सुजाता महापात्र ने ओडिसी में जीवंत किया सुंदरकांड के प्रसंगों को।
वाराणसी। संकट मोचन संगीत समारोह की अंतिम निशा में सोमवार को गायन व नृत्य की विधाओं के संगम में श्रोता रातभर गोते लगाते रहे। नृत्य से आरंभ गायन तक लगभग आधा दर्जन कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन हनुमान जी के दरवार में किया।
वहीं निशा का आरम्भ ओडिसी के शलाखा पुरुष केलूचरण महापात्रा के पुत्र रतिकांत व उनकी पुत्र वधू सुजाता महापात्रा की जोरदार प्रस्तुतियों से हुआ। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास के श्रीरामचरितमानस के प्रसंगों को ओडिसी के माध्यम से जीवंतता प्रदान की। रतिकांत महापात्र से सर्व प्रथम शबरी-राम प्रसंग के माध्यम से भक्ति की सरिता प्रवाहित की।
वहीं इसके बाद सुजाता महापात्रा ने पंडित केलू चरण महापात्र की संरचना जगन्नाथ जनीन के माध्यम से अभिनय नृत्य प्रस्तुत कर अपनी नृत्य को शिखर पर पहुंचाया। पति-पत्नी की नृत्य कला उस समय शिखर पर पहुंची जब उन्होंने समवेत रुप में राम-कथा के चूणामणि प्रदान प्रसंग को नृत्य के माध्यम से मंचस्थ किया।
वहीं इसमें श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड के अशोक वाटिका से लगायत चूणामणि प्रसंग तक की चौपाइयों को आधार बनाया गया था। मानस की इन चौपाइयों का स्वर व नृत्य का अद्भुत तालमेल श्रोताओं को प्रभावित कर गया। इसके पूर्व प्रीतिश महापात्रा व ऐश्वर्या ने अर्धनारीश्वर नृत्य में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
वहीं दूसरी तरफ़ दूसरी प्रस्तुति में संयुक्ता दास ने राग मारूविहाग में गायन किया। पटियाला घराने के उस्ताद रजा अली खान और सीनियर घराने के पं. समरेश चौधरी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने वाली संयुक्ता दास ने उप शास्त्रीय गायन की शिक्षा विदुषी पद्म विभूषण गिरिजा देवी से प्राप्त की है। प्रथम चरण में जहां उन्होंने ख्याल गायन किया।
वहीं इसके बाद इसी राग में गायन करते हुए एक ताल के बाद तीन ताल में 'जागू में सारी रैना' बंदिश सुनाई। 'राम कहत है....' और 'अब कैसे छूटे राम रट लागी...' का भी गायन किया। उनके साथ तबले पर पंकज राय और हारमोनियम पर मोहित साहनी ने संगत की।
वहीं तीसरे कलाकार के रूप में ख्यात लोक गायिका मालिनी अवस्थी का गायन रहा। उन्होंने राग विहंगड़ा में द्रुत बंदिश से शुरू हुआ। यह बंदिश उन्होंने हनुमान प्रभु को समर्पित की। बोल थी- लंका को ढहाए गए। इसके बाद राग विहाग में ठुमरी हमसे नजरिया काहे फेरी सुनाया। दादरा श्याम तोहे नजरिया लग जायेगी में मालिनी की गायिकी सिर चढ़कर बोली।
वहीं चौथी प्रस्तुति हैदराबाद के पद्मश्री प्रो. चेल्ला वेंकटेश्वर राव का मृदंगम वादन रही। 1981 में 36 घण्टे तक लगातार मृदंगम वादन में ग्रीनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज कराने वाले प्रो.राव के मृदंगम वादन में अंगुलियों की थाप काबिले- तारीफ रही। मृदंगम को सुनकर यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि 77 वर्ष की अवस्था में उनकी अंगुलियों में काफी जोर है।
वहीं उन्होंने यमन कल्याण में स्वरचित रचना की जोरदार प्रस्तुति दी। अगली प्रस्तुति राग जोग में स्वरचित रचना को भी काफी वाहवाही मिली। मृदंगम पर उनके द्वारा अन्वेषित ओंकार शब्द की प्रतिध्वनि सुनकर श्रोता भाव-विह्वल हो गए। मृदंगम पर इस ध्वनि को प्रथम बार निकालने का श्रेय प्रो. राव को है।