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यूपी : वाराणसी बीएचयू दृश्य कला संकाय में प्रदर्शनी रिफ्लेक्शंस में दिखा प्रकृति के साथ ही मानव जीवन और पर्यावरण का संबंध।

यूपी : वाराणसी बीएचयू दृश्य कला संकाय में प्रदर्शनी रिफ्लेक्शंस में दिखा प्रकृति के साथ ही मानव जीवन और पर्यावरण का संबंध।

                          Vinit Jaishwal City Reporter

वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय स्थित महामना एवं अहिवासी कला दीर्घाओं में सोमवार से कला प्रदर्शनी का शुभारंभ हुआ। इसमें संकाय के 20 छात्र कलाकारों की 60 कृतियां प्रदर्शित की गई हैं। रिफलेक्शंस शीर्षक से आयोजित इस प्रदर्शनी में शामिल कृतियों में प्रकृति, मानव जीवन और पर्यावरण के संबंधों को उकेरा गया है। इन कृतियों में एक ओर जीवन की जटिलताएं हैं, तो दूसरी ओर निश्छल प्रकृति है। मनुष्य के जीवन और इनके मध्य संतुलन बनाने का एक प्रयास इन कलाकारों के सृजन से प्रकट हो रहा है।

वहीं प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रसिद्ध इटैलियन कलाकार सारा ग्युबर्ती तथा दृश्य कला संकाय प्रमुख प्रो. हीरालाल प्रजापति ने किया। समन्वयक डा. सुरेश जांगिड़ ने बताया कि सभी कलाकार शैलीगत दृष्टि से परिपक्व हैं तथा बढ़ते असंतुलन से चिंतित व आत्मावलोकन के पक्षधर हैं। उनकी कलाकृतियों यही संवेदना प्रमुख कथ्य है। अहमद जाफर ने न्यू मीडिया के रूप में वीडियो द्वारा प्रकृति और मनुष्य के अन्योन्याश्रित संबंध पर प्रकाश डाला है। 

वहीं अजीत पटेल और जितेंद्र रजक ने सामाजिक जीवन की विद्रूपताओं को उजागर किया है, तो गरिमा यादव के चित्रों में बढ़ते उपभोक्तावाद से नष्ट होती धरोहर एवं संस्कृति के प्रति चिंता दिखाई पड़ती है। रामकृष्ण कुमार रमन तथा वंदना पटेल के चित्रों से प्रेम द्वारा असमानता समाप्त किए जाने की आस झिलमिलाती है। रजत पांडे और प्रवीण विश्वकर्मा मानव और पशुओं के साहचर्य की पैरवी करते हैं।

वहीं दूसरी तरफ़ सतीश कुमार पटेल, सरिता वर्मा और शिवम गुप्ता की कृतियों में मानव द्वारा पशुओं और प्रकृति के प्रति संवेदनशून्यता के संकेत हैं। रामकुमार पटेल के छापा चित्रों में ग्रामीण जीवन की महक है तो बांग्लादेश की सुदीप्ता स्वर्णाकर प्रकृति के अमूर्त पक्ष को अपने चित्रों में अभिव्यक्त कर रही हैं। 

वहीं श्रेया प्रजापति और वकील कुमार पटेल काशी के अध्यात्म को शिल्पों में प्रस्तुत किए हैं। शिवानी गौतम, पायल चौरसिया, गौतम देव और गौरव सिंह सामाजिक जीवन के विविध पहलुओं उजागर करते हैं। दीपक कुमार विश्वकर्मा ने मूर्तिकला में धागे के प्रयोग से जीवन की कोमलता और भंगुरता को अभिव्यक्त किया है। प्रदर्शनी 13 अप्रैल तक चलेगी।