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यूपी : वाराणसी विश्वनाथ धाम के पास अनूठा राम रमापति बैंक, वहीं मनोकामना पूर्ति के लिए रामनाम के ऋण की लगीं होड़।

यूपी : वाराणसी विश्वनाथ धाम के पास अनूठा राम रमापति बैंक, वहीं मनोकामना पूर्ति के लिए रामनाम के ऋण की लगीं होड़।


वाराणसी। धर्म नगरी काशी अपनी अनूठी श्रद्धा-भक्ति लिए जानी जाती है। बाहरी हुए तो लग सकता है, यह सपना है, लेकिन काशीवासियों के लिए प्रभु से भी रिश्ता ऐसा जैसे कोई घर का ही अपना है। कुछ इसी तरह के आस-विश्वास की नींव पर खड़ा है रामरमापति बैंक। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के समीप त्रिपुरा भैरवी गली में स्थित इस अनोखे बैंक में श्रीराम के नाम का लेन-देन होता है। 

वहीं श्रद्धालु मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रामनाम का ऋण लेते हैं और मन्नत पूरी होने पर मय सूद जमा कर देते हैं। इस तरह 95 साल में बैंक की पूंजी 19 अरब, 39 करोड़ 59 लाख 25 हजार तक पहुंच चुकी है। यही नहीं जहां राम, वहां शिव इस मान विधान के तहत सवा करोड़ शिवनाम भी बैंक में जमा हैं। खास यह कि बैंक का ऋणी बनने देश ही नहीं, विदेश तक से श्रद्धालु आते हैं।

वहीं रामनाम का कर्ज भी ऐसे ही नहीं मिलता। इसके लिए आहार-विहार में नियम संयम का पालन भी करना होता है। इसमें तामसिक भोजन के साथ झूठ का परित्याग करना होता है। कर्ज के अनुसार रामनाम लेखन, रामनाम पाठ व रामनाम जप करना होता है। 

वहीं प्रतिदिन 500 के हिसाब से आठ माह 10 दिन में सवा लाख रामनाम लेखन, 21 माह तक रामपाठ व तीन वर्ष तक रामनाम जपना होता है। रामनाम लेखन पूर्ण कर विधि-विधान से पोटली में बांध कर बैंक में जमा करना होता है। लेखन के लिए कागज-कलम-स्याही बैंक से निश्शुल्क दी जाती है।

वहीं रामरमापति बैंक में जमा रामनाम संग्रह रामनवमी पर दस दिन के लिए दर्शनार्थ भक्तों को सुलभ होता है। प्रभु के बालरूप की झांकी दर्शन के साथ ही परिक्रमा की जाती है। प्रसाद रूप में प्रभु को समर्पित कपड़े, खिलौने व रोली वितरित की जाती है।

वहीं मंदिर के मैनेजर दास कृष्णचंद्र बताते हैं कि कैलाशवासी स्वामीनाथ के शिष्य महात्मा सत्तरामदास नेराम भक्तों को पाप-ताप शमन, चिंता निवृत्ति व अक्षय सुख प्राप्ति के लिए संवत् 1983 में अनूठे रामरमापति बैंक की स्थापना की थी। दास छन्नूलाल को इसका दायित्व प्रदान कर प्रथम मैनेजर का कार्यभार दिया गया।