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यूपी : कानपुर में पीएफ भुगतान के लिए भटक रहे संविदा कर्मी, वहीं बोगस कंपनी में बनाए गए थे सदस्य।
कानपुर। केस्को के संविदा कर्मियों को बोगस कंपनी का सदस्य बनाकर उन्हें ईपीएफओ में पंजीकृत करा दिया गया। कर्मचारियों के यूएएन नंबर भी जारी हो गए लेकिन जो पीएफ धारक हैं, उन्हें ही नहीं पता कि वो बोगस कंपनी के सदस्य है। कर्मचारी बोगस कंपनी में कभी भी काम न करने का दावा कर रहे हैं। इससे अब ईपीएफओ के क्षेत्रीय कार्यालय के अफसरों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है।
वहीं चीनापार्क सब स्टेशन में कार्यरत केस्को के संविदा कर्मचारी असलम व जहीर ने बताया कि आकस्मिक स्थिति में पीएफ निकालने के लिए उन्होंने आनलाइन आवेदन किया तब उन्हें पता चला कि वो बोगस कंपनी के सदस्य हैं। जबकि वह इस कंपनी में कभी भी कार्यरत नहीं रहे। ईपीएफओ के पोर्टल पर जाकर आनलाइन क्लेम करने की प्रक्रिया में कंपनी एसएमसी मैन पावर साल्यूशन के नाम से दर्शा रहा था। कंपनी के बारे में छानबीन की तो पता चला कि ईपीएफओ में पंजीकृत कंपनी बोगस है। अब पीएफ भुगतान पाने के लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
वहीं ईपीएफओ में पंजीकृत बोगस कंपनी में सौ कर्मचारियों का मालिक एक ई रिक्शा चालक को बनाने का दैनिक जागरण ने खुलासा किया था। इसके बाद क्षेत्रीय कार्यालय से हाल ही में तीन लाख की रिश्वत लेते पकड़े गए प्रवर्तन अधिकारी अमित श्रीवास्तव को क्षेत्रीय आयुक्त ने जांच सौंपी थी। प्रवर्तन अधिकारी अमित ने किस स्तर पर जांच आगे बढ़ाई, इस बारे में ईपीएफओ के अधिकारी जवाब नहीं दे पा रहे। अब इसका खामियाजा केस्को के संविदा कर्मचारी भुगत रहे हैं।
वहीं ईपीएफओ में फर्जी कंपनी पंजीकृत कराकर संविदा कर्मचारियों को शामिल कर दिया गया है। केस्को के दो संविदा कर्मियों ने प्रकरण से अवगत कराया है। मंगलवार को एक प्रतिनिधिमंडल क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त से मिलकर निष्पक्ष जांच कराने की मांग करेगा।
वहीं ईपीएफओ में अंशधारकों की मेहनत की कमाई को फर्जीवाड़ा करके मास्टरमाइंड नहीं निकाल पाएंगे। दिल्ली में स्थित नेशनल डाटा सेंटर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए इन फर्जी केस चिह्नित कर क्लेब केस खारिज कर चेतावनी जारी करेगा। कानपुर स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारी केस की जांच करके आनलाइन दावा क्लेम की व्यवस्था को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करेगा। अधिकारी बताते हैं बड़ी संख्या में पीएफ भुगतान के लिए अंशधारक क्लेम करते हैं। नेशनल डाटा सेंटर में हर क्षेत्रीय कार्यालय से केस जाते हैं। सेंटर में बैठी विशेषज्ञों की टीम साफ्टवेयर के जरिए फर्जी केस को चिह्नित करती है।