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यूपी : मीरजापुर पर्यावरण संरक्षण में गोबर से जैविक खेती संग गमले बना समृद्ध होंगी समूह की महिलाएं।

यूपी : मीरजापुर पर्यावरण संरक्षण में गोबर से जैविक खेती संग गमले बना समृद्ध होंगी समूह की महिलाएं।


मीरजापुर। गोबर से जैविक खेती के साथ ही अब गमले भी तैयार होंगे। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं गोबर से गमले बनाकर पर्यावरण संरक्षण में भागीदार बनने के साथ ही आत्मनिर्भर बनेंगी। इनकी बिक्री कर आय बढ़ने से समूह के महिलाओं के जीवन में खुशियाें का नया उजाला आएगा।

वहीं टिकाऊ होने के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल है। गोबर के गमले में लगे पौधे को सीधा भूमि में रोपित कर सकते है। प्लास्टिक पालीथिन के गमले के स्थान पर इनका उपयोग किया जा सकता है। गमला क्षतिग्रस्त होने पर अपशिष्ट खाद के रूप में उपयोग कर सकेंगे।

वहीं गोबर की जैविक खाद से खेती की लागत कम करने की कवायद कर रही सरकार अब उस गोबर से ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का खाका खींच रही है। इसकी शुरुआत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण देकर गोबर गमलों को बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

वहीं मुख्य विकास अधिकारी श्रीलक्ष्मी वीएस ने बताया कि गोबर से गमले बनाने के लिए गोबर को पशु आश्रय स्थलों से उपलब्ध कराया जाएगा, इससे पशु आश्रय स्थल भी साफ हो जाएंगे। वहीं गोबर का भी सदुपयोग होने लगेगा, इससे होने वाली आमदनी से समूहों की आय बढ़ेगी। महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को गोबर से गमले बनाने का प्रशिक्षित किया जाएगा, इसके बाद उत्पादन शुरू होगा। 

वहीं इन गोबर गमलों में बीज डालकर नर्सरी में पौधे तैयार किए जाएंगे। गोबर से पौधों को पोषण मिलता रहेगा। इसके साथ ही पौधों को गोबर के गमले में तैयार करने के कारण उसमें अलग से जैविक खाद या उर्वरक का उपयोग नहीं करना होगा। पौध तैयार होने के बाद उन्हें जमीन पर गमले सहित ही लगाया जा सकेगा।

वहीं जिला कृषि अधिकारी पवन कुमार प्रजापति ने बताया कि गोबर खाद के रूप मे अधिकांश खनिजों के कारण मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। पौधे की मुख्य आवश्यकता नाईट्रोजन, फॉसफोरस तथा पोटेशियम की होती है। ये खनिज गोबर में क्रमशः 0.3-0.4, 0.1-0.15 तथा 0.15-0.2 प्रतिशत तक विद्यमान रहते हैं। मिट्टी के सम्पर्क में आने से गोबर के विभिन्न तत्व मिट्टी के कणों को आपस में बांधते हैं। यह पौधों की जड़ों को मिट्टी में अत्यधिक फैलाता है एवं मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाता है।