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खान बहादुर खान के सामने घुटने टेकने को मजबूर थी ब्रिटिश हुकूमत, 257 वीरों को अंग्रेजों ने दे दी थी फांसी
बरेलीः देशभर में आजादी का जश्न बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. आजादी के अमृत महोत्सव के इस मौके पर पूरा देश आजादी दिलाने वाले वीरों की शहादत को भी याद कर रहा है. इस कड़ी में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले बरेली के रुहेला सरदार खान बहादुर खान का नाम भी शामिल है. बरेली के स्वतंत्रता सेनानियों में जिनका नाम सबसे पहले लिया जाता है. खान बहादुर खान ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी और ब्रिटिश हुकूमत को रौंद कर रख दिया था. खान बहादुर खान से अंग्रेज इस कदर खौफ खाते थे की उनको फांसी देने के बाद बेड़ियों में जकड़ कर जिला जेल के भीतर ही दफन दिया गया था. आज भी खान बहादुर खान की मजार पुरानी जिला जेल के परिसर में है. अंग्रेजी हुकूमत ने 257 वीर सपूतों को फांसी पर लटका दिया था.
1857 की लड़ाई में खान बहादुर खान के नेतृत्व में आजादी के वीरों ने सर पर कफन बांधकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. बरेली शहर क्रांतिकारियों का बड़ा गढ़ था. बरेली में आजादी की तमाम निशानियां अभी भी मौजूद हैं. इसमें कमिश्नरी का एक बरगद का पेड़ भी था. जहां अंग्रेजों ने 257 आजादी के वीरों को फांसी पर लटका दिया था. यहां कमिश्नरी में बना शहीद स्तम्भ देश की आजादी में क्रांतिकारियों के बलिदान की याद दिलाता है.
गौरतलब है कि, 1857 की क्रांति में यहां के नवाब और क्रांतिकारी हाफिज रहमत खान के पोते खान बहादुर खान भी इस जंग में कूद पड़े. अंग्रेजों के खिलाफ जंग के लिए खान बहादुर खान ने अपने मुंशी शोभाराम की मदद से सेना तैयार की और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इनकी सेना के सामने अंग्रेजों ने घुटने टेंक दिए थे.
खान बहादुर खान आखरी रोहिला सरदार थे. वह अंग्रेजी कोर्ट में बतौर जज कार्यरत थे, उन्हें अंग्रेज़ों का विश्वास हासिल था और इसी विश्वास का फायदा उठाकर उन्होंने अपनी पैदल सेना तैयार कर ली थी. खान बहादुर ने अपने कई सैनिकों को दूसरे राज्यों में अंग्रेजों से लड़ाई के लिए भेजा. 31 मई 1857 को नाना साहब पेशवा की योजना के अनुसार उन्होंने रुहेलखंड मंडल को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया सभी अंग्रेज उनके डर से नैनीताल भाग गए थे. इसके बाद लगातार खान बहादुर खान का अंग्रेजों से संघर्ष चलता रहा. इस बीच लखनऊ के अंग्रेजों के अधीन चले जाने से नाना साहब भी बरेली आ गए. इसके बाद नकटिया पुल पर 6 मई 1858 में आखरी बार अंग्रेजों और खान बहादुर खान के बीच संघर्ष हुआ जिसमे भारतीयों को हार का मुंह देखना पड़ा.
इसके बाद खान बहादुर खान नेपाल चले गए, लेकिन राणा जंग बहादुर ने धोखे से उन्हें अंग्रेजों के हवाले कर दिया खान बहादुर खान पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें यातनाएं दी गयीं. 22 फरवरी को कमिश्नर रॉबर्ट ने दोषी मानते हुए खान बहादुर खान को फांसी की सजा सुना दी और 24 मार्च 1860 को उन्हें पुरानी कोतवाली पर सरे आम फांसी दे दी गयी.
अंग्रेजों को डर था कि खान बहादुर खान को पुरानी कोतवाली में फांसी देने के बाद लोग वहां पर इबादत न करने लगे जिसके कारण खान बहादुर खान को जिला जेल में बेड़ियों के साथ ही दफन कर दिया गया था. पुरानी जिला जेल में खान बहादुर खान की कब्र को काफी लम्बी जद्दोजेहाद के बाद जेल से बाहर निकाल कर जिला जेल के बाहर शिफ्ट किया गया था. शहीद दिवस पर लोग यहां आते हैं और खान बहादुर खान को याद करते हैं.