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वाराणसी देवी मां कुष्मांडा के दरबार में संगीत समारोह वह कजरी गायन का बना अंगूठा कीर्तिमान
देवी कूष्मांडा के वार्षिक संगीत समारोह में बुधवार को एक अनूठे इतिहास की पुनरावृत्ति हुई। समारोह में एक कुल की तीन पीढ़ियों ने अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत देवी दरबार से करने का कीर्तिमान अपने नाम किया।लखनऊ घराने की कथक नृत्यांगना डॉ. मनीषा मिश्रा के बाद उनके पुत्र आराध्य प्रवीण ने दरबार में पहली सार्वजनिक प्रस्तुति दी।
डॉ. मनीषा ने वर्ष 1999 में मंदिर में अपनी पहली प्रस्तुति दी थी। उस प्रस्तुति में उनके साथ तबला संगत करने वाले उनके पिता पं. रविनाथ मिश्र ने साठ के दशक में स्वतंत्र तबला वादन की पहली प्रस्तुति इसी दरबार में की थी। बुधवार की रात भी वह डॉ. मनीषा के साथ तबला संगत के लिए मौजूद रहे।
महोत्सव की प्रथम निशा में लखनऊ, बनारस और जयपुर घराने के कथक की बानगी पेश करने वाली मनीषा ने नृत्य का आरंभ देवी स्तुति 'नारायणी नमोस्तुते से किया। मां की नृत्य प्रस्तुति में बाल कलाकार आराध्य प्रवीण का तबला वादन भी शरीक रहा। इससे पूर्व प्रारंभ में पं.चंद्रकांत प्रसाद ने शहनाई वादन में सोहर व कजरी की धुने सुनायीं। वहीं कथक व तबला वादन के बाद मोहन कृष्ण ने बांसुरी की मधुर तान छेड़ी।
गहराती रात में मंच को प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं. देवाशीष डे का साथ मिला। उन्होंने शुरुआत राग मधगौंस की अवतारणा की। विलम्बित रूपक ताल में निबद्ध बंदिश 'देख मां मेरी ओर... के बाद इसी राग में द्रुत त्रिताल की बंदिश 'नमन करो महारानी भवानी...सुनायी। भजन से उन्होंने अपने गायन को विराम दिया। तबले पर सिद्धांत मिश्रा, हारमोनियम पर इंद्रदेव चौधरी संगत की। गायन में आद्या मुखर्जी ने साथ दिया।
रात करीब डेढ़ बजे मंच पर पहुंचे प्रख्यात गायक पं. गणेश प्रसाद मिश्र ने समयानुरूप राग सोहनी में निबद्ध अतिप्राचीन संस्कृत की बंदिश सुनाई। पं. बड़े रामदास की डेढ़ सौ साल पुरानी रचना 'हमरे सांवरिया नहीं आए सजनी छाई घटा घनघोर... को बनारसी अंदाज और मिजाज में श्रोताओं तक पहुंचाया। गायन का समापन भी बनारसी कजरी 'रिमझिम पड़ेला फुहार बदरिया घेरी अइनी ननदी... से किया। शेषरात्रि में नीरज मिश्र का सितार वादन हुआ। झाला बजाने के बाद अंत में उनहोंने पारंपरिक देवी गीतों की धुन छेड़ी। तबले पर प्रीतम मिश्रा की संगत रही।
महंत पंडित कौशल पति द्विवेदी ने मां कुष्मांडा को नूतन वस्त्राभूषण और सुगंधित फूलों से सुसज्जित किया। तत्पश्चात आरती महंत पं. संजय दुबे ने की। इस दौरान 51 डमरुओं का निनाद भी किया गया। भक्तों में हलवा व चना का प्रसाद बांटा गया। कार्यक्रम का संचालन गीतकार कन्हैया दुबे (केडी) ने किया। पं. शिवनाथ मिश्र, पं. राजेंद्र प्रसन्ना सहित सभी कलाकारों का स्वागत चुनरी, प्रसाद व माल्यार्पण से महंत पं. रामनरेश दुबे व पं. संजीव दुबे ने किया।