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आज सुबह आगरा की आखिरी स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरी हार का निधन हिंदू मुस्लिम एकता की प्रतीक  और बेमिसाल थी

आज सुबह आगरा की आखिरी स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरी हार का निधन हिंदू मुस्लिम एकता की प्रतीक और बेमिसाल थी


स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार का देहांत हो गया. उन्होंने रविवार की सुबह 4ः15 बजे आखिरी सांस ली. उनके जाने के बाद अब आगरा में कोई भी स्वतंत्रता सेनानी जीवित नहीं बचा.उनके गुजर जाने की खबर के बाद पूरे शहर में शोक की लहर दौड़ गई.


92 साल की स्वतंत्रता सेनानी नागरी प्रचारिणी सभा की सभापति होने के साथ ही शहर की कई सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ीं थीं. रानी सरोज गोरिहार ने हमेशा से ही हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम किया. वे हर प्रोग्राम में बस इसी बात पर जोर देती थी कि देश में सभी समाजों की भूमिका को कमतर करके नहीं देखना चाहिए.


मुल्क को आजाद कराने में जिनता योगदार हिंदुओं का है, उतना मुस्लिमों का भी है. आंदोलन चाहे कोई भी हर आंदोलन में मुस्लिम शामिल थे.


कांग्रेस नेता हाजी जमीलउद्दीन कुरैशी कहते हैं कि उनके इस दुनिया से चले जाने से आगरा ने अपना शांति दूत खो दिया. इस बिगड़ते हालात में भी सभी को साथ ले चलने पर जोर देती थीं. उन्होंने मुस्लिमों को कभी भी कमतर नहीं आंका. वे हर प्रोग्राम में कहती थी कि ये देश सिर्फ हिंदुओं की बदौलत आजाद नहीं हुआ बल्कि इसमें मुस्लिमों की कुर्बानियां भी शामिल हैं.


सीनियर पत्रकार डॉक्टर सिराज कुरैशी ने बताया कि रानी सरोज गौरिहार के इंतकाल से सभी जाति, मजहब के लोगों को सदमा लगा है. वे महान हस्ती थीं, जो सभी को साथ लेकर चलती थीं. उन्होंने कभी मुस्लिमों की अनदेखी नहीं की.


हमेशा मुस्लिमों के प्रोग्राम में शिरकत करती थीं. वे कहती थी कि जब आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी तो हमारे पिता के घर पर देशभर से बहुत से मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी आकर देश को आजाद कराने के लिए रणनीति बनाते थे. ये देश सभी की कुर्बानियों की बदौलत आजाद हुआ है.


उनका जन्म जगन प्रसाद रावत और सत्यवती रावत के घर कचहरी घाट में हुआ था. स्वाधीनता आंदोलन में वे वर्ष 1943 में एक वर्ष तक जेल में रहीं. 93 साल की रानी सरोज गौरिहार का जन्म 4 नवंबर 1929 में हुआ था. साल 1929 में जब गांधी जी आगरा आए थे तो उनके पिता जगन प्रसाद रावत और मां सत्यवती गांधी जी से मिलने के लिए यमुना ब्रिज स्थित गांधी स्मारक पहुंचे थे.


तब वे अपनी मां के गर्भ में थीं. रानी सरोज गौरिहार के माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. वे 1967 में मध्य प्रदेश के छतरपुर से विधायक भी रही थीं. स्वतंत्रता की लड़ाई मे वह 1943 में जेल भी गईं थीं. रानी सरोज गारिहार नागरीय प्रचारिणी की सभापति रहीं. उदयन शर्मा फाउंडेशन ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने आगरा पर लगातार साहित्य प्रकाशित किए.


कवि कुमार ललित ने बताया कि रानी सरोज गौरिहार आगरा में एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी थीं. उनके चले जाने के बाद आगरा में एक भी स्वतंत्रता सेनानी नहीं बचा है. उन्होंने बताया कि रानी सरोज गौरिहार ने अपने साहित्य से नागरी प्रचारिणी को नये आयाम दिए. आगरा के साहित्य पर उन्होंने तीन दर्जन किताबें लिखी थीं, जिनमें धर्म-संस्कृति, साहित्य और आगरा की गौरव गाथा शामिल है.