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वाराणसी में पुत्र की प्राप्ति व सलामती के लिए महिलाओं ने रखा व्रत मनाया ललही छठ का पर्व

वाराणसी में पुत्र की प्राप्ति व सलामती के लिए महिलाओं ने रखा व्रत मनाया ललही छठ का पर्व






पूजा करती महिलाएंललही छठ का धार्मिक महत्व: शास्त्रों के अनुसार 17 अगस्त को भाद्र कृष्ण षष्ठी है. भाद्र कृष्ण षष्ठी के ही दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. इसको हल षष्ठी के नाम से भी जानते हैं. चाल की भाषा में इसको ललही छठ भी कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार बलराम को हल से बहुत प्रेम था. उनका शास्त्र भी हल था इसीलिए इस छठ को हलषष्ठी भी कहते हैं.



ललही छठ की मान्यता: आज के दिन विशेष तिथि में महिलाों के द्वारा पूजन पाठ करने से परिवार को सुख समृद्धि प्राप्त होती है. ललही छठ पर मान्यता है कि जिस भी दंपत्ति के संतान नहीं होती है या उसे पुत्र की कामना है. तो ललही छठ का व्रत रखते हुए विधि विधान से पूजन करने से संतान और पुत्र की प्राप्ति होती है. इसलिए महिलाएं इस व्रत को श्रद्धा-भाव से करती हैं



.व्रत पूजन विधि: भारत में होने वाले डाला छठ को हर कोई जानता है. बिहार से प्रारंभ होकर आज पूरे देश और विदेश में भी डाला छठ को उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसी क्रम में ललही छठ का व्रत भी काफी कठिन होता है. क्योंकि गर्मी के दिन में महिलाएं निर्जला व्रत रखकर इसका पूजन करती हैं.



 इस व्रत की विधि अन्य व्रतों से थोड़ा कठिन होती है. इसमें सात भुने हुए अनाज और एक बर्तन में सात प्रकार की मेवा रख कर महिलाएं स्नान,नित्याक्रम और ध्यान करके संकल्प लेती हैं. उसके बाद स्वच्छ जगह पर गोबर से लिपाई कर घटा बनाती हैं. महुआ की शाखा, प्लासा 1, 1 संख्या बांधकर गड्ढे में रखकर पूजा करती हैं. 



आभा गुप्ता ने केसरी न्यूज़ को बताया कि यह उनकी पहली ललही छठ है. इसका बहुत महत्व है. संतान और पुत्र प्रप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है. घाट पर पूजने करने के बाद घर पर जाकर पारन करेंगे. सूर्य अस्त से पहले कुल्लू और चीनी का चावल मिलाकर फलाहार करेंगे. फिर पूरी रात कुछ नहीं खाते और पीते हैं. यह व्रत पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे यहां किया जा रहा है.