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सावन पूर्णिमा पर क्यों धारण किया जाता है नया जनेऊ , जानिए इसका महत्व
धर्म और आस्था ।श्रावण पूर्णिमा के दिन स्नान-दान और पूजा-व्रत का महत्व होता है. इस दिन बहनें अपने भाई को राखी भी बांधती हैं, लेकिन इसी के साथ श्रावण माह की पूर्णिमा ब्राह्मणों के लिए भी खास होती है क्योंकि इस दिन नया जनेऊ धारण करने की परंपरा है. मान्यता है कि श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेते हैं और पुराने जनेऊ का त्याग कर नया जनेऊ धारण करते हैं. दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी से जानते हैं श्रावण माह में क्यों धारण किया जाता है नया जनेऊ और क्या है इसका महत्व?
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर जनेऊ होता है क्या है. आचार्य जी के अनुसार, हिंदू धर्म में विवाह और मुंडन जैसे कुल 16 संस्कार होते हैं. इन्हीं में जनेऊ या यज्ञोपवीत भी एक संस्कार है. यह एक ऐसा पवित्र सूत (धागा) होता है, जिसे कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है. जनेऊ के एक धागे में तीन-तीन तार होते हैं और कुल तारों की संख्या नौ होती है.
हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह पूर्णिमा तिथि पड़ती है, लेकिन श्रावण माह में पड़ने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. इस दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाया जाता है. इस साल श्रावणी पूर्णिमा (Sawan Purnima) 11 अगस्त 2022 को है.
धार्मिक दृष्टिकोण से ऐसा माना जाता है कि जनेऊ धारण करने से शरीर शुद्ध व पवित्र रहता है और व्यक्ति बुरे कर्मों से दूर रहता है. कहा जाता है कि जनेऊ धारण करने से स्मरण शक्ति तेज होती है, इसलिए कम उम्र में ही बच्चों का जनेऊ संस्कार कराने की परंपरा है.