Uttar Pradesh
मीरजापुर : अहरौरा के सूरदास की हाथों में जादू, 50 वर्षों से बना रहे मिट्टी के खिलौने दिया और घड़े ,,
एजेंसी डेस्क
मिर्जापुर : : अहरौरा के कटरा वार्ड निवासी बसंतु प्रजापति उर्फ सूरदास एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बसंतु जब 10 वर्ष की उम्र में पहुंचे तब इनको खिलौनों से खेलने का शौक था, लेकिन गरीबी व लाचारी ने खेलने नहीं दिया। इससे बसंतु अपने नाना के साथ उनके काम में हाथ बंटाने लगे। बसंतु के नाना मिट्टी के बर्तन बनाते थे और रोजी-रोटी चलाते थे। बसंतु अपने नाना के काम में हाथ बटाते-बटाते एक दिन अचानक मिट्टी के पात्र बनाने को लेकर जिद करने लगे, जबकि बसंतु यह भली-भांति जानते थे उनको आंखों से कुछ भी दिखाई नहीं देता और वो कभी देख नहीं सकते। इसके बाद बसंतु के नाना ने उनका हाथ पकड़कर सबसे पहले दीपक बनवाए। उसके बाद गर्मियों में पानी पीने के लिए घड़े, फिर बर्तन और खिलौने बनाना सीखने लगे। धीरे-धीरे बसंतु बड़े होने लगे। करीब 18 वर्ष की आयु में मिट्टी के पात्र बनाने में अपने नाना से महारथ हासिल कर लिये।
कुछ वर्ष बाद सिर से उठ गया नाना का साया
नेत्रहीन बसंतु जिंदगी जीने के लिए दिन-रात मेहनत करते रहे, लेकिन कुछ वर्षों के बाद इनके सिर से नाना का साया उठ गया और वह बिल्कुल अकेले पड़ गए। दूर के रिश्तेदारों ने किसी तरीके से एक दिव्यांग लड़की को जीवनसाथी के रूप में चुना। इसके बाद इनकी वैवाहिक जीवन की शुरुआत हुई। बसंतु को एक बेटा और एक बेटी भी है। बेटी सयान हो गई थी तो उसकी शादी कर दी, लेकिन पुत्री-दामाद उनके साथ रहते हैं। बेटा थोड़ा दिमागी रूप से कमजोर है, लेकिन काम में सहयोग करता है।
हर वर्ष करते हैं दीपावाली त्योहार का इंतजार
बसन्तु लगभग 50 वर्षों से मिट्टी के सामान बनाकर बाजार में बेचते हैं। दीपावली का त्योहार बसंतु के लिए बेहद खास है। ये हर वर्ष दीपावाली त्योहार का इंतजार करते हैं। लोगों के जरूरत के हिसाब से दीपक, घरिया, खिलौने बनाते हैं। जब त्योहार नजदीक आता है, तब उसे बाजार में ले जाकर बेचते हैं। बसंतु दीपावली त्योहार को लेकर जोर-शोर से तैयारी में जुटे हैं।
नेत्रहीन बुजुर्ग को दीये बनाते देख हतप्रभ रह गए एसडीएम
नेत्रहीन बुजुर्ग के दीये बनाते समय एसडीएम चुनार प्रशासनिक केएस पांडेय उसके घर पहुंच गए और बिन आखों के दीये बनाते देख सराहना की। नेत्रहीन बसंतु 65 वर्ष की अवस्था में भी चाक पर कारीगरी करते हैं। यह देख एसडीएम हतप्रभ हो गए। नेत्रहीन बुजुर्ग ने बताया कि चंदौली के भभौरा गांव में उनका पैतृक निवास है। छह वर्ष की उम्र में ही उनके पिता की हत्या हो गई थी। उसके बाद उनकी मां कटरा वार्ड स्थित मायके आ गई, तभी से बसंतू यहीं बस गए। पिता का साया सिर से उठने के बाद किशोरावस्था में ही बसंतु बिन आखों के ही चाक चलाना सीख लिए। मिट्टी के बर्तन हो या दीये, वह बड़ी सफाई से बना लेते हैं। खुद ही मिट्टी को गढ़ते हैं और अपने हाथों से चाॅक चलाकर बर्तन बनाते हैं।
एसडीएम बोले, जल्द मिलेगा इलेक्ट्रानिक चाक
नेत्रहीन बुजुर्ग ने बताया कि अगर उन्हें इलेक्ट्रिक चाक मिल गया होता तो मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ता। बूढ़े हो चुके हाथों से चाक उठाने और डंडा से चलाने के लिए ज्यादा मेहनत करना पड़ता है। एसडीएम ने बताया कि जल्द ही नेत्रहीन बुजुर्ग को इलेक्ट्रानिक चाक व अन्य सरकारी सुविधाएं उपलब्ध कराया जाएगा।