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रामनगर की रामलीला : महाराजा दशरथ की रानियां खुशी से फूली नहीं समाई जब चारो बहुओं के पांव अयोध्या राजमहल के आंगन में पड़े।
वाराणसी रामनगर : सीय चलत व्याकुल पुरबासी, होहिं सगुन सुभ मंगल रासी॥
भूसुर सचिव समेत समाजा, संग चले पहुंचावन राजा॥
महाराज जनक से आज्ञा पाकर बारात विदा हुई। अयोध्या के लिए जहां महारानी कौशल्या समेत तीनों माताएं और सभी नर-नारी बरात वापसी की राह में पलकें बिछाए हुए थे। आखिर वह पावन बेला आई। बारात अयोध्या पहुंचते ही ढोल नगाड़े बज उठे। एक तरफ मंगल गीतों का मधुर गायन तो दूसरी और पुष्पों की वर्षा हो रही थी। विधि विधान के साथ हर्षित माताओं ने नववधुओं का परिछन किया और फिर गूंज उठी श्री राम की जय जय कार।
बरात अयोध्या के मुख्य द्वार पर पहुंची और राम सीता के पालकी का पट परिछन के लिए खोला गया। लीला प्रेमी उनके दर्शन पाकर धन्य हो उठे। चारों ओर जय सीता राम का उद्घोष होने लगा। सीता को देखने के लिए महिलाओं की भी भारी भीड़ थी। माताएं राम सीता का परिछन करके उनकी आरती उतारकर महल में प्रवेश करने के बाद राजकुमारों और उनकी बहुओं को सिंहासन पर बैठाया जाता है। माताएं उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
दशरथ पुत्रों सहित स्नान करके कुटुंबियों को भोजन कराते हैं। सब को शयन कराने के लिए कहते हैं। मुनि विश्वामित्र आश्रम जाने के लिए विदा मांगते हैं। दशरथ सदैव कृपा बनाए रखने और दर्शन देते रहने के लिए कहकर उनका आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करते हैं। यहीं पर आठों स्वरूपों की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया।