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वाराणसी ,,रामनगर की रामलीला ; गुरु वशिष्ठ ने समझाया,,, परंतु राम वन गमन जाने के लिए तैयार हुए ,,उधर कैकई को सखियों सहित सारी प्रजा ने जमकर कोसा

वाराणसी ,,रामनगर की रामलीला ; गुरु वशिष्ठ ने समझाया,,, परंतु राम वन गमन जाने के लिए तैयार हुए ,,उधर कैकई को सखियों सहित सारी प्रजा ने जमकर कोसा


वाराणसी ,,,विश्व प्रसिद्ध रामनगर की श्री रामलीला के आठवें दिन शुक्रवार को अयोध्या में राज्याभिषेक और कोप भवन प्रसंग की लीला हुई। राजा दशरथ ने राम को अयोध्या का उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया।राम के राजतिलक की तैयारियां शुरू हो गईं। यह देखकर देवताओं में खलबली मच गई। आननफानन मां सरस्वती के पास पहुंचे और निवेदन किया कि कुछ ऐसा उपाय करें, जिससे राम राजपाट छोड़कर वन चले जाएं। जिस कार्य के लिए धरती पर अवतार लिया वह पूरा हो सके।

देवताओं की बात सुनकर माता सरस्वती ने कैकेयी की दासी मंथरा की बुद्धि फेर दी। मंथरा ने कैकेयी को ऐसा गुमराह किया कि वह कोपभवन में पहुंच गईं। कोप भवन में राजा दशरथ उन्हें मनाने जाते हैं। कैकेयी ने राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और भरत के लिए राज गद्दी मांग ली।यह सुनकर राजा दशरथ जमीन पर गिर पड़े। वह कहती हैं कि कुछ भी कर लो तुम्हारी माया नहीं चलने दूंगी।
 राजा दशरथ कहते हैं कि सूर्यवंश के लिए कुल्हाड़ी न बनो। वे छाती पीट-पीटकर जमीन पर तड़पने लगे और अचेत हो गए। सेवक के कहने पर सुमंत कोपभवन पहुंचे तो वह राजा दशरथ की दशा देखकर परेशान हो गए। कैकेयी ने उनसे राम को बुलाने को कहा।

जब राम कोपभवन पहुंचे तो कैकेयी ने उन्हें वरदान के बारे में बताया। उनकी बात सुनकर श्रीराम सहर्ष वन जाने के लिए तैयार हो गए। दशरथ उन्हें गले लगाकर कुछ बोल नहीं पाए। सभी विधाता को कोसने लगे। गुरु वशिष्ठ ने कैके यी को समझाने का प्रयास किया। सखियों ने भी कोसा, लेकिन कैकेयी पर असर नहीं हुआ। सुमंत ने कौशल्या को वरदान के बारे में बताया तो उन्होंने पिता की आज्ञा से राम को वन जाने की अनुमति दे दी। उसी समय सीता आकर उनके चरण पकड़कर उन्हें प्रणाम करती हैं तो मां कौशल्या अचल सुहागन होने का आशीर्वाद देती हैं। भगवान की आरती के साथ लीला को विश्राम दिया गया।