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विजयदशमी को गोरक्षपीठ में दंडाधिकारी की भूमिका में होते हैं योगी आदित्यनाथ

विजयदशमी को गोरक्षपीठ में दंडाधिकारी की भूमिका में होते हैं योगी आदित्यनाथ




एजेंसी डेस्क
नाथ संप्रदाय के सबसे बड़े पीठ गोरक्षपीठ में शारदीय नवरात्रि का एक अलग महत्व होता है. इस नवरात्रि में पीठ के पीठाधीश्वर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है. गोरक्षपीठ वैसे तो शैव मतावलम्बियों का सबसे बड़ा केंद्र है, लेकिन शिव के साथ शक्ति की आराधना भी यहां पर बेहद आस्था के साथ की जाती है.

पिछले कई सालों से इस पीठ के पीठाधीश्वर की भूमिका का निर्वहन उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं. 

गोरक्षपीठ में सप्तमी की रात्रि में निशा पूजन किया जाता है. मां कालरात्रि की इस विशेष पूजा में देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ-साथ प्रकृति के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. महाअष्टमी को ही हवन किया जाता है नवमी के दिन गोरक्ष पीठ में कन्या पूजन का कार्यक्रम पीठ के पीठाधीश्वर के द्वारा पूर्ण किया जाता है. 

इसमें 51 कन्याओं बटुकों का पांव पखार कर उन पर पुष्प अर्पित किया जाता है उन्हें चुनर उढाकर, दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ लेते हैं.

कुछ ऐसा होता है विजयदशमी का कार्यक्रम

गोरक्षपीठ में सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम विजयदशमी को होता है. विजयदशमी के दिन पीठाधीश्वर राजा की भूमिका में नजर आते हैं. एक राजा के तरह ही राजसी वस्त्र मुकुट धारण कर पीठ के पीठाधीश्वर विजयदशमी के दिन सुबह श्रीनाथ जी की पूजा करते हैं फिर गोरक्षपीठ में स्थापित सभी देवी देवताओं के मंदिरों में जाकर उनकी विशेष पूजा की जाती है. 

पूजा का यह कार्यक्रम कई घंटों तक चलता है. पीठाधीश्वर इस दिन जब अपने कक्ष से पूजा के लिए निकलते हैं तो उनके साथ उनकी सेना प्रजा भी मौजूद रहती है. ढोल-नगाड़ा, बैंड बाजा डमरु की ध्वनि के बीच पीठाधीश्वर अपनी पूजा को संपूर्ण करते हैं. 

इसके बाद पीठ में तिलक पूजन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें देश भर से आए नाथ योगी, साधु-सन्यासी तथा गोरक्षपीठ के भक्त अपने राजा का तिलक लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इसी दिन शाम को पीठाधीश्वर की शाही सवारी निकलती है.

इस शाही सवारी में पीठाधीश्वर के साथ उनके अंगरक्षक, सेना प्रजा भी पैदल 3 किलोमीटर तक चलकर मानसरोवर मंदिर पहुंचती है, जहां पर पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ मानसरोवर मंदिर में भगवान शंकर की आराधना करते हैं. इसके बाद से यह शाही सवारी रामलीला मैदान पहुंचती है, जहां पर भगवान श्रीराम, मां सीता, लक्ष्मण जी हनुमान जी के चरित्रों को निभाने वाले पात्रों का तिलक लगाकर पूजन किया जाता है यहां पर पीठाधीश्वर का संबोधन होता है. इसके बाद जब पीठाधीश्वर मन्दिर पहुंचते हैं तो रात में मन्दिर के तिलक हाल में राजा का दरबार लगता है, जहां पर पीठाधीश्वर दंडाधिकारी की भूमिका में होते हैं. इस समय पूरे साल में नाथ योगियों के कार्यों की समीक्षा होती है जिसका कार्य ठीक नहीं होता है या जो पीठ की परंपरा के विपरीत कार्य नही करता है उसे दंडित भी किया जाता है एक साल के लिए उसपर प्रतिबंध भी लगाया जाता है. इसके साथ ही जिसका दण्ड पूरा हो जाता है उसे वापस सेवा कार्य में शामिल भी किया जाता है.