एजेंसी डेस्क : वाराणसी, 29 अक्टूबर। काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी शनिवार शाम कान्हा (भगवान श्रीकृष्ण) के भक्ति में लीन दिखी। शहर के लक्खा मेले में शुमार तुलसीघाट की नागनथैया लीला में घाट पर द्वापर युग के गोकुल-वृंदावन सरीखा नजारा दिखा।
लीला में प्रतीक रूप से कालिंदी यमुना बनी गंगा में विषधर कालिया नाग का मान मर्दन कर कान्हा उसके फन पर बंशी बजाते नृत्य मुद्रा में जैसे ही प्रकट हुए। घाट पर मौजूद लाखों श्रद्धालु यह नयनाभिराम झांकी देख आहृलादित हो गये। तकरीबन पांच सौ साल पहले गोस्वामीतुलसीदास जी द्वारा शुरू की गई श्रीकृष्ण लीला में डमरू के नाद, घंट-घड़ियाल की गूंज के बीच 'वृंदावन बिहारी लाल की जय','हर-हर महादेव' के गगनभेदी उद्घोष से पूरा गंगा तट गुंजायमान हो उठा।
इसके पहले कार्तिक शुक्ल चतुर्थी पर अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के नेतृत्व में तुलसीघाट पर आयोजित श्रीकृष्ण लीला देखने के लिए अपरान्ह तीन बजे से ही लोग गंगा घाटों पर जमा बाढ़ के पानी के बावजूद पहुंचने लगे। जैसे-जैसे लीला का समय नजदीक आता गया गंगा घाट की सीढ़ियां, आसपास के मकानों के छत, बारजे श्रद्धालुओं से पट गये। गंगा में भी नौकाओं पर सवार लोगों की भीड़ जमी रही।
अपरान्ह तीन बजे श्री संकटमोचन मंदिर के महन्त प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र की देखरेख में लीला शुरू हुई। नटखट कान्हा अपने बाल सखाओं के साथ गंगा नदी प्रतीक रूप से यमुना के किनारे कंदुक (गेंद) खेलने लगे। कान्हा का नटखट रूप देख मौजूद लोग निहाल हो गये।
मृदंग की थाप और मंजीरे की झनकार के बीच गेंद अचानक यमुना नदी में समा गई। गेंद के यमुना में जाते ही दर्जनों डमरुओं का निनाद के बीच संकीर्तन मंडली ने ब्रजविलास का दोहा 'रोए चले श्रीदामा घर को। जाय कहत मैं महरि महर को गाया और इधर बाल सखा कान्हा से गेंद नदी से वापस लाने की जिद करने लगे। उनकी जिद पर भगवान श्रीकृष्ण कदंब के पेड़ की डाल पर चढ़ गये। जैसे ही संकीर्तन मंडली के स्वर गूंजे-'यह कहि नटवर मदन गोपाला, कूदि परे जल में नंदलाला, कान्हा शाम ठीक 4.40 बजे कदम्ब की डाल से यमुना में कूद गये।
काफी देर तक जब कान्हा नदी से बाहर नहीं निकलते तो बाल सखा व्याकुल होने लगे। उनका धैर्य जवाब देने लगा। कुछ समय बाद कान्हा विषधर कालिया नाग का मान मर्दन कर उसके फन पर नृत्य मुद्रा में वेणुवादन कर प्रकट हुए। तो लगा कि प्रदूषण रूपी फुंफकारों से यमुना के प्रवाह और गोकुल-वृंदावन की आबो हवा में जहर घोल रहे कालिया नाग का दर्प भंग कर पर्यावरण पुरूष भगवान श्रीकृष्ण ने फिर एक बार प्रकृति के संरक्षण का संदेश दिया हो।
घाट पर मौजूद श्रद्धालु नटखट कान्हा की यह अद्भुत नयनाभिराम झांकी देख निहाल हो गये। घाट पर मौजूद श्रद्धालुओं और देशी-विदेशी पर्यटकों ने नटवर नागर की जय जयकार, हर-हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष से फिजाओं को गुंजायमान कर दिया। इसके बाद कान्हा ने कालिया नाग के फन पर ही सवार रह नदी की धारा का चक्कर लगाते हुए चारों दिशाओं में दर्शन दिया।
इसके बाद बजड़े पर सवार अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के सदस्यों ने कान्हा की महाआरती की। इस दौरान स्टीमर पर काशी राज परिवार के उत्तराधिकारी महाराज डॉ अनंत नारायण सिंह अपने पुत्रों के साथ मौजूद रहे। महाराज कान्हा की झांकी को अपलक निहारते रहे। काशी राज परिवार को देख मौके पर मौजूद लोग हर-हर महादेव के उद्घोष से उनका अभिवादन करते रहे। महाराज भी लोगों को हाथ जोड़ कर अभिवादन का जवाब देते रहे। लीला के समापन पर काशी राज महाराज ने लीला कमेटी के व्यवस्थापक को परम्परानुसार सोने की गिन्नी (स्वर्ण मुद्रा) भी दिया।
बताते चले तुलसीघाट की नागनथैया लीला में कालियानाग के फन पर वेणुवादन करते भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप में स्वयं भगवान आ जाते हैं ऐसा जनमानस में विश्वास है। पूरी लीला के दौरान भगवान भोले की नगरी मानो गोकुल बन जाती है। काशी में मान्यता है कि स्वयं महादेव भी इस लीला को देखने आते हैं। उनके प्रतिनिधि के तौर पर काशीराज परिवार स्वयं उपस्थित होता है।
काशी के पारंपरिक लक्खा मेले का गवाह बनने लाखों लोग उमड़ते है। घाटों के अलावा लोग अस्सीघाट से लेकर निषादराज घाट तक गंगा की गोद में नौका और बजड़े पर सवार होकर अनूठी पांच मिनट की इस लीला को देख आहलादित होते है। अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के महंत प्रो. विशम्भरनाथ नाथ मिश्र समस्त काशीवासियों की ओर से काशीराज परिवार के वंशज महाराज अनंत नारायण सिंह को सम्मान स्वरूप पुष्प अर्पित करते है।