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आज से शुरू हुआ लोक आस्था का महापर्व, शुभ मुहुर्त में होगी छठ-पूजा की विधि और महत्व,कथा,,,

आज से शुरू हुआ लोक आस्था का महापर्व, शुभ मुहुर्त में होगी छठ-पूजा की विधि और महत्व,कथा,,,





एजेंसी डेस्क : 28 अक्टूबर से छठ पूजा का चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को लेकर श्रद्धालुओं में खासा उत्साह है। यह सूर्य उपासना का सबसे बड़ा त्योहार है, जिसमें डूबते और उगते सूर्य की आराधना की जाती है। 

हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पष्ठी तिथि पर छठ पूजा की जाती है। इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी माई की भी पूजा-उपासना विधि-विधान से की जाती है। छठी माई सूर्यदेव की बहन हैं। 

लोक आस्था का महापर्व छठ दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाता है। छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है। इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत 28 अक्तूबर से हो रही है। पर्व के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्ध्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। 


धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ का व्रत संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। 

चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा, व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर व्रत का समापन किया जाता है। 

यह व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है। इसमें व्रती महिलाएं लगातार 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं। 

छठ पूजा अनुष्ठान तिथि,,, 

छठ पूजा का पहला दिन- नहाय खाय 28 अक्तूबर, शुक्रवार 

छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना 29 अक्तूबर, शनिवार 

छठ पूजा का तीसरा दिन- डूबते सूर्य को अर्घ्य 30 अक्तूबर, रविवार 

छठ पूजा का चौथा दिन- उगते सूर्य को अर्घ्य 31 अक्तूबर, सोमवार 

छठ पूजा अर्घ्य मुहूर्त,,, 

संध्या अर्घ्य सूर्यास्त का समय 30 अक्तूबर - शाम 05 बजकर 37 मिनट 

उषा अर्घ्य सूर्योदय का समय 31 अक्तूबर- सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक 

छठ पूजा का पहला दिन : नहाय-खाय 28 अक्तूबर, शुक्रवार 

सूर्योदय- सुबह 06 बजकर 30 मिनट पर 

सूर्यास्त- शाम 05 बजकर 39 मिनट पर 

नहाय-खाय का शुभ समय (शोभन,सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग) 

शोभन योग : सुबह से शुरू 

सर्वार्थ सिद्धि योग : सुबह 06 बजकर 30 मिनट से 10 बजकर 42 मिनट तक 

रवि योग : सुबह 10 बजकर 42 मिनट से आरंभ 

छठी मैया की पूजा का महत्व,,, 

शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। 

प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है। शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।