एजेंसी डेस्क : 13 अक्टूबर को करवा चौथ है। पति के सौभाग्य और सेहत की कामना के लिए ये व्रत किया जाता है। इस दिन चौथ माता की पूजा की जाती है। महिलाएं इस दिन पानी भी नहीं पीती हैं। ये निर्जला व्रत है।कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता हैं। चंद्र उदय के बाद चंद्रदेव को अर्घ्य दिया जाता है । चंद्रदेव को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं खाना और पानी ग्रहण करती हैं। जो महिलाएं ये व्रत करती हैं उनके लिए करवा चौथ माता की कथा पढ़ना और सुनना जरूरी है।
ये है करवा चौथ व्रत की कथा
इंद्रप्रस्थ नाम का एक नगर था। वहां वेद शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम था लीलावती। इनके सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरावती था। वीरावती की शादी हो गई थी और शादी के बाद कार्तिक कृष्ण चतुर्थी पर वह अपने भाइयों के घर आई थी। वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। वीरावती भूख और प्यास की वजह से चंद्र उदय से पहले ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई परेशान हो गए।
सभी भाइयों ने एक पेड़ के पीछे मशाल जलाकर उजाला किया और बहन को होश में लाकर चंद्र उदय होने की बात कही। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक मशाल के उजाले को ही अर्घ्य दिया और भोजन कर लिया। इस व्रत के कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई । पति की मृत्यु के बाद वीरावती ने अन्न और जल का त्याग कर दिया। उस दिन इंद्राणी पृथ्वी पर आई थीं।इंद्राणी ने वीरावती से दुख का कारण पूछा।
इंद्राणी ने वीरावती को बताया कि तुमने करवा चौथ का व्रत सही तरीके से नहीं किया था। चंद्र उदय होने से पहले ही तुमने अर्घ्य देकर भोजन कर लिया इसीलिए तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई है। अब अपने पति को फिर से जीवित करने के लिए तुम्हें विधि-विधान के साथ करवा चौथ का व्रत करना होगा। मैं उस व्रत के पुण्य से तुम्हारे पति को जीवित कर दूंगी।वीरावती ने बारह महीनों की सभी चौथ का व्रत किया और करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से किया। इससे प्रसन्न होकर इंद्राणी ने उसके पति को जीवनदान दे दिया। इसके बाद उनका वैवाहिक जीवन सुखी हो गया।