सूर्य षष्टि पूजा
छठ पूजा : भगवान सूर्य को दो पत्नियां हैं, छठ पर्व में उनकी भी करें आराधना, महाभारत व रामायण से जुड़ी है कथा
एजेंसी डेस्क : छठ पूजा : दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाने वाला छठ पर्व का भारतीय संस्कृति में व्यापक महत्व है। यहां छठ पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
सूर्योपासना का महापर्व बिहार में घर-घर मनाया जाता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और पूर्वोत्तर राज्य में भी इस महापर्व को लेकर खास उत्साह रहता है।
हमारे वैदिक संस्कृति में मान्यता है कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा है। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। संध्याकाल अर्घ्य में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युषा एवं प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण उषा को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।
छठ महापर्व का महात्म्य बताते हुए गोसपुर निवासी आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि पुराणों के कथानुसार भगवान राम लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या आने पर राज्याभिषेक के पश्चात रामराज्य की परिकल्पना को ध्यान में रखकर राम और सीता ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को ही उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी को पूर्ण किया। पवित्र सरयू तट पर भगवान राम सीता के इस कठोर अनुष्ठान से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। तब से छठ पर्व इस अंचल में विशेष रूप से लोकप्रिय हो गया।
आचार्य नेपौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त एवं सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। भगवान सूर्य की आराधना करते हुए विश्वामित्र के मुख से अनायास ही वेदमाता गायत्री प्रकट हुई थी। यह पवित्र मंत्र भगवान सूर्य के पूजन का परिणाम था। तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को समस्त अंचल विशेष में यह महापर्व मनाया जाने लगा।
एक अन्य मान्यता है कि जुए में जब पांडव अपना राज-पाट, धन-दौलत सभी को हारकर जंगल-जंगल घूम रहे थे, उस समय पांडवों की दुर्दशा और संकट से मुक्ति पाने के लिए द्रोपदी ने भगवान सूर्यनारायण की कठोर तप आराधना करते हुए छठ व्रत किया। फलस्वरूप पांडवों को अपना खोया हुआ राजपाट, सम्मान, प्रतिष्ठा सभी कुछ प्राप्त हो गया।
नहाय खाय के साथ छठ पर्व शुरू,,,
छठ पर्व का शुभारंभ शुक्रवार को कद्दू भात या नहाय खाय से शुरू हो गया। कद्दू भात यानी लौकी की सब्जी और अरवा चावल का भोजन और नहाय खाय यानी गंगा या पवित्र नदी व सरोवर में स्नान करके भोजन एवं प्रसाद बनाकर खाया गया। इस प्रकार छठ पूजा केवल एक पर्व ही नहीं बल्कि इसे महापर्व का दर्जा प्राप्त है। विधि-विधान से यह महापर्व को करने से संपूर्ण आपदा से मुक्ति तथा सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
30 को होगा संध्याकालीन अर्घ्य,,
कार्तिक शुक्ल पक्ष में 29 अक्टूबर यानि शनिवार को छठ व्रतियों के लिए एक भुक्त खरना सिद्धियोग में होगा। 30 अक्टूबर यानि रविवार को छठ व्रतियों के लिए सायंकालीन अघ्र्यदान संध्या 5 बजकर 30 मिनट पर तथा 31 अक्टूबर यानि सोमवार को छठ व्रतियों के लिए प्रात: कालीन अघ्र्यदान के पश्चात व्रतियों के लिए पारण।