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एक ऐसा सूर्य मंदिर जिसकी रचना स्वयं विश्कर्मा ने की थी, छठ पूजा पर जानिए इस अद्भुत मंदिर की और खास बातें,,,
एजेंसी डेस्क : नई दिल्ली। हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में छठ पूजा का विशेष महत्व है। ये त्योहार हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सूर्यदेव और छठी मां की पूजा करने का विधान है।इसमें महिलाएं 36 घंटों का निर्जला उपवास रखती हैं। सबसे कठिन व्रतों में एक माना जाने वाले छठ पूजा का पर्व 4 दिनों तक चलता है, जिसमें पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस पूजा को सम्पन्न किया जाता है।
भगवान सूर्य के मंदिरों की बात की जाए तो उसमें कोणार्क का सूर्य मंदिर सबसे पहले स्थान पर आता है।
लेकिन छठ पूजा के महापर्व पर हम आपको सूर्यदेव के एक अन्य अद्भुत मंदिर के विषय में बताने जा रहे हैं, जो करीब डेढ़ लाख साल से जस का तस खड़ा है। तो आइए जानते हैं कौन सा है वो मंदिर और क्या है उसकी विशेषता.
बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस भव्य मंदिर में छठ पर्व के दिन भक्तों की भारी भीड़ एकत्रित होती है। इस खास मौके पर भगवान के दर्शन के लिए देश के कोने कोने से लोग आते हैं।
(इस मंदिर के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं धरती पर अवतरित होकर एक रात में इस सूर्य मंदिर का निर्माण किया था)
बिहार के इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि ये देश का पहला ऐसा मंदिर है जिसका द्वार पश्चिम दिशा की ओर है। मंदिर में भगवान सूर्य के तीनों रूपों उदयाचल-(प्रात: सूर्य), मध्याचल (मध्य सूर्य) और अस्ताचल (अस्त सूर्य) की प्रतिमा स्थापित है।
ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा की शुरुआत इसी स्थान से हुई थी। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण करीब डेढ़ लाख साल पहले हुआ था। मंदिर के निर्माण में आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।
इसकी सबसे खास बात ये है कि मंदिर के निर्माण में किसी भी प्रकार के गारा या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ है।इसके बावजूद, इतने सालों से मंदिर कैसे खड़ा है और सिर्फ एक रात में इस मंदिर का निर्माण कैसे हो सका? ये बात अभी तक रहस्यमय बनी हुई है। स्थापत्य और वास्तुकला के इस अद्भुत मंदिर की ऊंचाई करीब एक सौ फीट बताई जाती है।
इस अनोखे सूर्य मंदिर के बाहर एक शिलालेख स्थित है, जिस पर लिखे श्लोक के अनुसार, मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया गया था। इस पर वर्णित श्लोक के अनुसार, मंदिर अपने 1 लाख 50 हजार 19 वर्ष पूरे कर चुका है।