Headlines
Loading...
लखनऊ का कतकी मेला, ज‍िसका हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी करते हैं सालभर इंतजार, देखें क्‍यों है खास

लखनऊ का कतकी मेला, ज‍िसका हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी करते हैं सालभर इंतजार, देखें क्‍यों है खास


Published from Blogger Prime Android App


एजेंसी डेस्क : केसरी न्यूज़ प्रतिनिधि (एनके, यादव)हिंदू-मुस्लिम एकता और भाईचारे को अपने आंचल में समेटे नवाबी काल के ऐतिहासिक कतकी मेले में गंगा-जमुनी तहजीब का समागम भी होता है। लखनऊ का यह ऐसा पहला मेला है जहां हिंदुओं के साथ मुस्लिमों को भी इसका पूरे साल इंतजार रहा है।गंगा गोमती में स्‍नान के साथ शुरू होता है मेला,,,,, 

मेले में मिट्टी के काले रंग के बर्तन मिलते हैं जिसका लोगों को पूरे साल इंतजार रहता है। सात नवंबर कार्तिक पूर्णिमा पर आदि गंगा गोमती में स्नान के साथ ही मेले की शुरुआत होगी। कभी डालीगंज पुल पर लगने वाले मेले को गोमती के तट पर लाने की मीडिया और प्रेस की मुहिम 2016 में शुरू हुई।

यह मुहिम 2017 में रंग लाई और समाजसेवियों और मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि के प्रयास से मेला मनकामेश्वर उपवन घाट तक लाया गया। अब इस ऐतिहासिक मेले के वजूद को बचाने के लिए नगर निगम ने कमर कसी है। पिछले चार साल से नगर निगम ने मेले की जिम्मेदारी स्वयं ले ली है। झूलेलाल घाट पर लगे इस मेले में आधुनिकता की छाप जरूर पड़ी है,लेकिन पुराने जमाने की झलक भी इस मेले में नजर आती है।

सूरज कुंड मेला के नाम से मिली प्रसिद्धि,,,,,

कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला ऐतिहासिक कार्तिक मेला आदि काल से लग रहा है। सूरज कुंड की तर्ज पर लगने वाले इस मेले में पहले जो मवेशी भी मिलते थे। लखनऊ में छह सूरज कुंड बनाए गए थे जिनमे से एक डालीगंज के पास और दूसरा रुदौली के पास है। इसके साथ ही चार अन्य अब इतिहास हो गए हैं। नवाबी काल के समय मेले में सुबह-सुबह महिलाएं ज्यादा जाती थीं।

पर्दा प्रथा होने के चलते पुरुष सुबह जगे इससे पहले महिलाएं अपने जरूरी सामानों की खरीदारी कर वापस घर लौट आती थीं। मिट्टी के काले व लाल बर्तनों के साथ ही और सिलबट्टे, झन्ना, सूप, डलिया जैसे घरेलू सामान मेले में मिलते हैं। उबले सिंघाड़े की खुशबू पूरे मेले में फैली रहती है। मौसमी सामानों की खरीदारी के लिए लोगों को पूरे साल इसका इंतजार रहता है। समय के साथ ही इसमे बदलाव होता गया।

आम और खास लोगों को भाता है मेला,,,,,

डालीगंज का ऐतिहासिक कतकी-बुड़क्की मेले की शुरुआत सात नवंबर से होगी। कई जिलों से व्यापारी और शिल्पकार इस मेले में आएंगे। मेले में खुर्जा की क्राकरी, चाय के सेट, मग, कप, प्लेट, अचार जार, सर्विंग प्लेट, ग्लास और टंबलर, कटलरी, डिनर सेट और मूसल सेट आदि जैसे विभिन्न प्रकार के सामान लोगों को अपनी ओर खींच रहे हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए विशाल पहियों से लेकर छोटे-छोटे मीरा-गो-राउंड, बैलून शूटिंग, टास रिंग और कार की सवारी, आदी लगे हुए हैं। लोग जो़रों-शोरों से खरीदारी करते हुए नज़र आएंगे। इस मेले की खासियत यह है कि यह मेला लगातार मकर संक्रांति तक  चलता है।