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महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती के भांजे से मिले धर्मेंद्र प्रधान, बोले- खुशी भी हुई, गर्व भी हुआ।

एजेंसी डेस्क : (वाराणसीब्यूरो) काशी तमिल संगमम की तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए वाराणसी पहुंचे केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शुक्रवार को तमिल के राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती के भांजे प्रो.केवी कृष्णन और उनके परिजनों से मुलाकात की। हनुमान घाट स्थित तमिल के राष्ट्रकवि के भांजे और बीएचयू से सेवानिवृत्त प्रो. केवी कृष्णन के घर के बाहर जब मंत्री समेत अन्य अधिकारियों का काफिला रुका तो स्थानीय लोग भी पहुंचे। मुलाकात के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने प्रो. केवी कृष्णन का हालचाल पूछा व आशीर्वाद लिया।

इस दौरान बीएचयू कुलपति प्रो. एसके जैन, जिलाधिकारी एस राजलिंगम समेत कई भाजपा नेता मौजूद रहे। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि आज काशी में महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती के 96 वर्षीय भांजे प्रो. केवी कृष्णन व उनके परिवार से मिलने का सौभाग्य मिला। उनसे मिलकर खुशी भी हुई और गर्व भी हुआ। अब तक के सबसे महान तमिल साहित्यकारों में से एक महाकवि भारती का काशी हनुमान घाट स्थित घर एक ज्ञान केंद्र और पावन तीर्थ है।
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि सामाजिक न्याय और महिला सशक्तीकरण पर सुब्रह्मण्यम भारती जी की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। काशी में ही सुब्रह्मण्यम भारती का परिचय अध्यात्म और राष्ट्रवाद से हुआ। उनके व्यक्तित्व पर काशी ने गहरा प्रभाव छोड़ा।

धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि काशी तमिल संगमम हमारी महान संस्कृतियों के बीच एकता और समानता का ही उत्सव है। महाकवि भारती जी का जीवन, विचार और लेखन हमारी आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा। उनके भांजे केवी कृष्णन के बच्चे और पौत्र आज महाकवि भारती की विरासत को आगे ले जा रहे हैं।

तमिल के राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती के भांजे प्रो. केवी कृष्णन ने बताया कि 1898 में मामा जब वाराणसी आए थे तो उनकी अवस्था मात्र 16 साल थी। हनुमान घाट पर वह अपनी बुआ कुप्पम्माल उर्फ रुक्मिनी अम्माल के घर ठहरे थे। जय नारायण इंटर कॉलेज में दाखिला लिया और चार साल तीन माह के बाद वह पांडिचेरी चले गए। यहां राष्ट्रकवि ने हिंदी, संस्कृत, बंगाली, मराठी, पंजाबी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। उनका कहना था कि अंग्रेजी के बाद तमिल एकमात्र भाषा है। जो किसी और भाषा से नहीं लिया गया है।
