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वाराणसी : रामेश्वर के लोटा भंटा मेले में उमड़ी भीड़, वरुणा नदी में श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी।
एजेंसी डेस्क : वाराणसी : सात वार नौ त्योहार के फक्कड़ी जीवन को जीने वाली उत्सवधर्मी काशी में मार्गशीर्ष (अगहन) महीने की षष्ठी तिथि सोमवार को लोगों ने जंसा रामेश्वर के लोटा-भंटा मेले में जमकर मस्ती की। वरूणा के कछार में लगभग दस किमी की दूरी में फैले मेला क्षेत्र में भोर पहर से ही आस्थावानों की भीड़ उमड़ने लगी और श्रद्धालु वरुणा नदी में पुण्य की डुबकी लगाते रहे।
श्रद्धालुओं ने कड़ी सुरक्षा के बीच कतारबद्ध होकर रामेश्वर महादेव का दर्शन-पूजन कर जलाभिषेक किया। इसके बाद मेला क्षेत्र में स्थित वरूणा के कछार में जगह-जगह गोहरी के अहरा पर दाल-चावल और बाटी-चोखा बनाकर भोग लगाया और रामेश्वर महादेव को जाकर चढ़ाया। भोग लगाने के बाद श्रद्धालुओं ने परिजनों और दोस्तों के साथ इसे पूरे श्रद्धाभाव से ग्रहण किया।
मेला परिसर में गोहरी, अहरा के चलते हर तरफ धुंआ ही नजर आ रहा था। भोजन के बाद श्रद्धालुओं ने मेले में मौज-मस्ती के साथ घूम कर जमकर खरीददारी की। मेले में झूला, चरखा, मौत का कुआं, सर्कस, जादूगर आदि आकर्षण का केन्द्र बना रहा। मेला क्षेत्र में जंसा, हरहुआ, बड़ागांव, मिर्जामुराद, कपसेठी, लोहता, चोलापुर, चौबेपुर, रामेश्वर की पुलिस टीम लगातार गश्त करती रहीं।
उल्लेखनीय है कि पंचकोसी परिक्रमा में रामेश्वर तीर्थ धाम का विशेष महत्व हैं। जनश्रुति हैं कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण के वध के बाद प्रायश्चित के लिए रामेश्वर में प्रवास किया था। यहां उन्होंने वरुणा नदी से एक मुठठी रेत लेकर शिवलिंग की स्थापना की थी। शिव व राम का प्रथम मिलन होने के कारण यह रामेश्वर धाम नाम से जाना जाता है। एक और मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व एक युवा दम्पति पुत्र व कल्याण की कामना से अगहन मास के कृष्ण पक्ष के छठे दिन यहां रात्रि विश्राम कर भगवान राम का स्मरण किया, तो उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसी विश्वास के चलते नि:सन्तान दम्पति भी यहां दरबार में हाजिरी लगाते हैं। लोग अपने परिजनों के साथ भोजन तैयार कर भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाकर स्वयं ग्रहण कर मेला का आनन्द उठाते हैं। यहां धाम में आदिशक्ति मां तुलजा-दुर्गा, राधा-कृष्ण, लक्ष्मणेश्वर, भरतेश्वर, शत्रुघ्नेश्वर, दत्तात्रय, राम-लक्ष्मण, जानकी सहित कई देवी-देवताओं का भी विग्रह हैं। मान्यता है कि यहां महाभारत काल में पांडव भी यहां आये थे।
मंदिर के पुजारी अनु तिवारी ने बताया कि लोटा-भंटा मेला लगभग दस किमी की परिधि में लगता है। उन्होंने बताया कि देश के कोने-कोने से पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए लोग लोटा-भंटा मेले में आकर भोलेनाथ को बाटी-चोखा का प्रसाद चढ़ाकर उसे खुद ग्रहण करते हैं।