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हड़प्पा से भी हजारों साल पहले की मानव सभ्यताएं थीं भारत में, काशी के इन वैज्ञानिकों ने किया रिसर्च
वाराणसी में बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने लगभग 16,000 डीएनए सैंपल के अध्ययन के बाद यह नई अवधारणा दी है। उन्होंने बताया कि पीढ़ियों के साथ मानव जीन खुद को म्यूटेट कर बेहतर होते जाते हैं। इनके अध्ययन के आधार पर पूर्वजों के बारे में सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है।
अपने अध्ययन के आधार पर प्रो. चौबे बताते हैं कि तीन लाख साल पहले आधुनिक मानव या होमो सेपियंस की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई। यहां से ये लोग भारतीय प्रायद्वीप में पहुंचे। मानव जाति ने सभ्यता का आगे का सफर भारत में ही तय किया। उस दौर में यह आबादी हिमालय, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच रहा करती थी। यहीं से पूरे एशिया महाद्वीप और आसपास में आबादी फैली। डीएनए अध्ययन इसे लगभग 25 हजार साल पुरानी घटना बताते हैं। जबकि सिंधु घाटी व मेसोपोटामियन सभ्यता नौ हजार साल या इससे भी पुरानी बताई जाती है।
डीएनए सैंपलिंग के आधार पर किए गए इस अध्ययन में शामिल दुनियाभर के वैज्ञानिकों में प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि डीएनए सैंपलिंग की विधा ‘बेसियन स्काईलाइन स्टैटिस्टिक्स कोड’ के जरिए डीएनए में छिपे राज को सामने लाने में मदद मिली।
यूरोप के ‘एलजीएम’ से भारत ने बचाया
मोइक्रोलिथिक तकनीक देने के साथ ही भारत ने 25 हजार साल पहले इंसानी प्रजाति को बचाने में भी महती भूमिका निभाई। वैज्ञानिक बताते हैं कि 25 हजार साल पहले यूरोप में ‘एलजीएम-लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम’ यानी अंतिम आइस एज का दौर आया।
इस दौरान पूरे यूरोप में पांच फुट मोटी बर्फ की परत जम गई थी। उस दौर में भारत में मौजूद सभ्यता के कारण इंसानी जीवन बचा रहा और बाद में यहीं से प्रसार हुआ। एलजीएम के दौरान भी भारत में मौसम के बेहतर चक्र ने इंसान का जीवन बचाए रखा।
माइक्रोलिथिक टेक्नोलॉजी अहम
माइक्रोलिथिक टेक्नोलॉजी यानी पत्थर से औजार बनाने की कला। प्रो. चौबे बताते हैं कि आधुनिक मानव के भारत आकर सभ्य होने के पीछे इस तकनीक का बड़ा योगदान था। पत्थर के औजार बनाने के बाद इंसान ने खेती और शिकार शुरू किए। भोजन की प्रचुरता हुई तो दिमाग दूसरी रचनात्मक क्रियाओं की तरफ मुड़ा।