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रामचरित मानस और वाल्मीकि रामायण पर उठे विवाद के बीच बिहार के मोहम्मद इस्माइल मंदिरों में गाते हैं रामायण चौपाई और गणेश वंदना,,,।
एजेंसी खोज डेस्क : बिहार,ब्यूरो। रामचरित मानस और वाल्मीकि रामायण को लेकर इस समय देश के कई राजनेता व लेखक कई तरह के सवाल खड़ा कर रहे है।
पहले मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का मां सीता के जीवन पर दिया गया विवादित बयान दिया। एक कार्यक्रम के दौरान मां सीता की तुलना आज की तलाकशुदा पत्नी की लाइफ से कर दी। उन्होंने कहा कि सीता का भूमि में समाना आज के दौर का सुसाइड जैसा मामला है।
इसके बाद उनके सुर में सुर मिलाते हुए बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर के रामचरित मानस को लेकर विवादित बयान दिया। अब कर्नाटक के लेखक और 'बुद्धिजीवी' केएस भगवान ने राम को लेकर एक और विवाद को हवा देने का काम किया है। उन्होंने भगवान राम और सीता को लेकर कई आपत्तिजनक टिप्पणियां की है। उनके बयान को लेकर देशभर में विरोध हो रहा है। अभी ये मामला थमा नहीं था कि समाजवादी पार्टी के नेता और एमएलसी स्वामीप्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस को लेकर विवादित बयान दिया है।
इसी बीच बिहार के मसौढ़ी के छाता गांव के रहने वाले मो. इस्माइल'कुरानछोड़कर रामायण' पढ़कर समाज को एक नया संदेश दे रहे हैं। जिसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। जिस तरह से मो. इस्माइल मंदिरों में जाकर माथा टेकते हैं और फिर भजन गाते हैं, इससे गांव के ना तो किसी हिंदू परिवार को दिक्कत होती है और न ही कोई मुस्लिम परिवार इन्हें रोक लगाता है। इन्हें दूसरे गांव में भी होने वाले मंदिरों के भजन में बुलाया जाता है और रामायण की चौपाई और गणेश वंदना गवाई जाती है।
जी हां, मसौढ़ी के छाता गांव के रहने वाले मोहम्मद इस्माइल कुरान को पढ़ना नहीं जानते है, लेकिन रामायण उन्हें कंठस्त याद है। वह रामायण का पाठ पढ़ते हैं मंदिरों में जाते हैं या यूं कहें उन्हें मंदिरों में रामायण पाठ के लिए भी बुलाया जाता है। वह अपनी मंडली के साथ भजन गाते हैं, मंदिर में भजन सुनाते हैं और लोगों को इसके लिए कोई आपत्ति भी नहीं होती है ना तो कोई हिंदू परिवार इनका विरोध करता है और ना ही कोई मुस्लिम परिवार इनका विरोध करता है।
यह जहां भी जाते हैं इन्हें सम्मान ही मिलता है। मोहम्मद इस्माइल का कहना है कि हम मुस्लिम परिवार में जन्म जरूर लिए हैं, लेकिन हम हिंदू परिवार के बीच में रहे और यहीं से हमने मंदिर जाना सीखा और रामायण पढ़ना भी सिखा है। मस्जिद में हम साल में दो बार ही जाते हैं, पहला ईद और दूसरा बकरीद इसके बाद हम मंदिर में ही जाते हैं, चाहे हनुमान जी का मंदिर हो या भोलेनाथ जी का मंदिर हो। मंदिर में जाने से हमें कोई परहेज नहीं है और ना ही लोगों को किसी तरह की आपत्ति है।
मो. इस्माइल को कुरान पढ़ना नहीं आता ?,,,,,,,
धार्मिक रूप से मोहम्मद इस्माइल मुस्लिम परिवार से आते हैं,उनका जन्म मुस्लिम परिवार में ही हुआ, लेकिन हिंदू परिवार के बीच में रहकर उन्होंने रामायण का पाठ करना सिखा और आज रामायण का पाठ करते हैं। उन्हें कुरान पढ़ना नहीं आता है और ना ही मस्जिदों में जाकर नमांज करना आता है। लोग ईद या बकरीद में जब जाते है तो वह जिस तरह से लोग खड़े होते हैं और नमाज का जो शब्द पढ़ते हैं वह शब्द भी इन्हें नहीं आता है। इनका कहना है जिस तरह से वह उठते हैं बैठते हैं हम सिर्फ उसका साथ देते हैं। यहां सर्व धर्म एक है अल्लाह भी एक हैं और भगवान भी एक हैं लोग सिर्फ झूठी धर्म की लड़ाई करते हैं।
रामायण बढ़िया लगता है कुरान हम नहीं जानते,,,,,,,
वहीं बात करें मोहम्मद इस्माइल के परिवार की तो उनका परिवार भी अब किसी तरह की आपत्ति नहीं जताता है। उनका कहना है कि समाज में मिलजुल कर ही रहना हमारे परिवार का एक धर्म है और इसी धर्म को हमारे भाई निभा रहे हैं, और एकता का प्रतीक बन रहे हैं। हमें भी अच्छा लगता है। हमें रामायण बढ़िया लगता है, कुरान हम नहीं जानते हैं, शुरुआती दौर में तो हमारा विरोध हुआ लेकिन अब कोई विरोध नहीं करता है ना ही घर का कोई सदस्य और न बाहर का कोई सदस्य।
हर धर्म से मिलकर रहते हैं लोग,,,
ग्रामीण कहते हैं इनके पर्व में हम जाते है, और यह हमारे पर्व में ये आते हैं। हमलोग एक दूसरे से मिल जुलकर रहते है। बता दें कि आज के दिनों में लोग जहां आपसी सौहार्द बिगाड़ने में जुटे हैं, वहीं मोहम्मद इस्माइल जैसे लोगों के दिलों से दिल जोड़ने का काम कर रहे हैं।