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चंदौली। मध्यकालीन साहित्य का उद्देश्य समाज को सुधारना:के सत्यनारायण,,,।
एजेंसी डेस्क : :(एस.के.गुप्ता), (ब्यूरो,मुगलसराय)। पं पारसनाथ तिवारी नवीन परिसर,नियमता बाद में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान,
साहित्य अकादमी, लाल बहादुर शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं विद्याश्री न्यास के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मध्य कालीन कविता अवधारणाओं का पुनराविष्कार गोष्ठी समापन सत्र के मुख्य अतिथि के. सत्य नारायण,अपरपुलिसमहानिदेशक वाराणसी परिक्षेत्र ने कहा कि हम सभी को ये ध्यान रखना चाहिए कि हम सभी इस वसुधा के पात्र हैं, तभी हम लोक कल्याण कर पायेंगे।
तेलुगु कवि लेमन की तुलना उन्होंने कबीर से करते हुए कहा कि वे भी कबीर की भाँति मूर्ति पूजा और अंधविश्वास के विरोधी थे। उन्होंने कहा कि आज जिस भी साहित्य की रचना हो रही है वो वर्तमान युग के अनुसार रची जा रही है। मध्य काल रचनाओं में लिखा गया सूफ़ी कंपोजिट कल्चर का स्वरूप था। मध्य काल की कविताएँ उस समय के आक्रांताओं के विरोध में उठने वाला जनता का स्वर था।
मध्य काल के कवियों ने लोक भाषा में रचना की जिससे उनकी बात जन जन तक आसानी से पहुँच सके। के. सत्यनारायण ने कहा कि मध्यकालीन साहित्य का मुख्य उद्देश्य समाज को सुधारना था। विशिष्ट अतिथि प्रो उदय प्रताप सिंह ने कहा कि कर्मठता के साथ संवेदना जब आती है तभी साहित्य का सृजन होता है। अध्यक्षीय संबोधन देते हुए प्रो श्रद्धानंद ने कहा कि पं पारसनाथ तिवारी में हम सभी पं विद्यानिवास मिश्र को याद कर रहे हैं ये हम सभी के लिए अनुकरणीय है।
प्रो श्रद्धानंद ने कहा कि सबसे विचारणीय यह तथ्य है किसंतोष की संस्कृति विलुप्त हो रही है, जिससे हमारी सभ्यता का क्षरणों रहा है। कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों का स्वागत प्रो उदयन मिश्र ने किया। संचालन प्रो. इशरत जहां ने किया।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रबंधक राजेश कुमार तिवारी ने कहा कि ज्ञान और कर्मयोग से एक नया सृजन होता है। आज कार्यक्रम में प्रो. इशरतजहां की पुस्तक नादानियाँ का लोकार्पण किया गया।