Headlines
Loading...
वाराणसी : गंगा के हर घाट पर मिल जाते हैं बतकही के राजा, हाव भाव से बूझ लेते- कौन पर्यटक किस प्रांत का है,,,।

वाराणसी : गंगा के हर घाट पर मिल जाते हैं बतकही के राजा, हाव भाव से बूझ लेते- कौन पर्यटक किस प्रांत का है,,,।


Published from Blogger Prime Android App

एजेंसी डेस्क नहीं तो हमारा नाम नाही का: ओहायो गंगा तेरा दे रैन्प्यू ओ तेतो (गुड मार्निंग, गंगा की लहरों पर दीप जलाएं)...। खाटी जापानी बोली सुनकर दशाश्वमेध घाट की सीढ़ियां उतरते जापानी युगल के कदम एकबारगी ठिठक जाते हैं।

Published from Blogger Prime Android App

हजारों मील दूर परदेस में अपनी बोली की यह संक्षिप्त पुकार कुछ पल के लिएहीसहीउन्हेंआह्लादित कर जाती है आगे बढ़ते ही उनकी नजरें निखालिस जापानी अंदाज में कॉर्निश बजा रहे एक विनम्र व्यक्तित्व को अपना स्वागत करते पाती है। 

झकाझक दक्षिण भारतीय लुंगी में डटा यह शख्स बड़ी ही मनुहार के साथ इस पर्यटक दंपती को अपनी चौकी तक ले जाता है और उनके हाथों से गंगा में दीपदान करवाता है।

ये हैं सुभाष साहनी, जो घाट पर गंगा पूजन के लिए हर रोज ही पुष्प और दीप की डाली सजाते हैं। दस-दस रुपये जोड़कर अपने छोटे से कुटुंब की आजीविका चलाते है शिक्षा के नाम पर अक्षर ज्ञान से भी वंचित सुभाष भइया का कारोबारी गुर है, उनका देश व विदेश की 11 भाषाओं का धारा प्रवाह संवाद। 

इसके दम पर वे पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों से पल भर में ही सहज आत्मीय रिश्ता जोड़ लेते हैं, और उसे दीप-पुष्प का एक दोना खरीद लेने के लिए हर हाल में राजी कर लेते हैं । बातचीत में पता लगता है कि सुभाष तमिल, तेलुगू, मलयालम, मराठी और कन्नड़, गुजराती के अलावा फ्रेंच, जापानी, हिब्रू, कोरियन और साथ फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं।

उनसे विदा लेकर हम घाट की सीढ़ियां उतरते हैं और उधर सुभाष बाबू... पोराला, पोरीला, आईला, बड़ेला... कुठे देश कुठे काशी... घ्या गंगा ला काकुनद्या (मां बाप व बाल बच्चों के निमित्त दीपदान करें) की मराठी हांक के साथ मुंबई से काशी आए मछुआरिनों के दल को धर लेते हैं। 

सुभाष साहनी की चौकी से महज पांच सीढ़ी नीचे तीर्थ पुरोहित तिवारी जी महाराज का आसन है । पंडितजी भी दर्जा पांच से आगे नहीं पढ़ पाए हैं, मगर ज्ञान के नाम पर यह भी पांच भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखते हैं। फिलहाल वह गुरु खर्रा तेलुगू में अम्मा इदू दशाश्वमेध घट्टम... के जरिये आंध्र प्रदेश से आए तीर्थ यात्रियों को साध रहे हैं। ऊपर बुजुर्गवार महंगी मांझी तीर्थ यात्रियों से नौकायन के आनंद का बखान करते उन्हें उनकी ही भाषा के मायापाश में बांध रहे हैं। 

देश-विदेश से बीएचयूऔरसंस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ने आए सैकड़ों युवा विद्यार्थी सुभाष साहनी और महंगी चच्चा की इस महारत के फैन हैं। 

रोजी रोटी से पावरफुल कौनो मास्टर नाहीं हौ,,,,,,,

शीतला मइया के पूजा पाठ के बाद घाट की सीढ़ियां चढ़ रहे मंदिर के महंत शिव प्रसाद पांडेय कहते हैं, भइया! रोजी रोटी से पावरफुल कौनो मास्टर नाहीं हौ, जउन काम कउनो कोचिंग साल दुई साल में नाहीं कर सकेला उ काम धंधा क फंदा घाट के लड़िकन के हफ्ता भर में सिखा देला। केकर केकर नाम गिनाई। हनुमान मालवाले, विजय मांझी, फोटोग्राफर अजय साहनी, चाहें गैलन बेचेवाली जमुना के चाहे जेसे भिड़ा के देख ला बड़े-बड़े भाषा क जानकार झाईं खा जई हें, ना ही तो हमार नाम नाही बा का समझे,,,।