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मिट्टी की खुशबू वापस खींच लाई बिहार तो MBA पास बिनोद ने लगाया टिश्यू पेपर प्लांट, कई युवकों को दे रहे राेजगार,,,।
एजेंसी बिजनेस डेस्क : (पटना)।जीवन में कुछ करने की ललक और दृढ़इच्छा शक्ति हो तो कोई लक्ष्य बड़ा नहीं होता है।
ऐसी ही ललक बिनोद को लगी, जिसके बाद आज बिनोद रोजगार के सृजनकर्ता बनकर उभरे हैं।बात कर रहे हैं उस बिनोद की, जो गया जिला चाकन्द बाजार के निवासी हैं। वर्ष 2007 में मार्केटिंग से एमबीए की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के बाद दिल्ली के एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी से अपने कैरियर की शुरुआत की। लगभग चार वर्षों तक नौकरी की। उन्हें अपने जीवन के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो रही थी। होता भी क्यों। क्योंकि बिनोद को बिहार के मिट्टी की खुशबू बरबस याद आती थी। यहां आकर कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल को कुरेद रही थी।
घर लौटकर लगाया टिश्यू पेपर प्लांट,,,,,,,
बिनोद बताते हैं कि वर्ष 2012 में मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ दिल्ली से अपने घर लौट आए। हमारे इस निर्णय से घर के सभी सदस्यों में नाराजगी थी। इसका असर हम पर नहीं पड़ा। वे बताते हैं कि मध्यवर्गीय परिवार से रहने के कारण आर्थिक आजादी नहीं थी। बेरोजगार युवकों को रोजगार देने की ललक चरम पर थी। तब हमने कम्प्यूटर ट्रेनिंग केंद्र खोला। बेरोजगार युवकों को प्रशिक्षण देना शुरू किया, ताकि युवक प्रशिक्षण लेकर स्वावलंबी बने। यहां पर भी ज्यादा मन नहीं लगा। वर्ष 2018 में टिश्यू पेपर बनाने का विचार आया। पैसे की कमी आड़े आ रही थी तो प्लांट नहीं लगा पाया,इधर-उधर दिमाग लगाया तो मुख्यमंत्री उद्यमी योजना की जानकारी मिली और हाजीपुर गया। वहां सीआईपीटी से प्रशिक्षण लिया। इसके उपरांत सरकार से दस लाख रुपये की सहायता मिली, जिसके बाद टिश्यू पेपर का प्लांट स्थापित किया और वर्ष 2021 में टिश्यू पेपर का उत्पादन शुरु हो गया।
कई युवकों को दे रहे रोजगार,,,,,,,
टिश्यू पेपर प्लांट के शुरुआती दिनों में पांच लोगों को रोजगार दिया। विनोद बताते हैं कि यह तो अभी शुरुआत है। बाजार में इसकी मांग है। आने वाले दिनों में और मांग बढ़ेगी। उत्पादन बढ़ाना होगा। तब कम से कम पचास लोगों को रोजगार से जुड़ जाएंगे। इससे इतर वे बेरोजगार युवकों को उद्यमिता विकास कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण दे रहे हैं। प्रशिक्षण पाए युवकों को सरकार से सहायता मिल रही है। ऐसे युवक लघु उद्योग लगाकर स्वावलंबी बन रहे हैं। कल तक जो विनोद दूसरे यहां नौकरी कर रहे थे, वे आज दूसरे को नौकरी दे रहे हैं।