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वाराणसी : हमारी संस्कृति में प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र की व्यवस्था: न्यायमूर्ति बीएस चौहान,,,।

वाराणसी : हमारी संस्कृति में प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र की व्यवस्था: न्यायमूर्ति बीएस चौहान,,,।



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एजेंसी डेस्क : (वाराणसी, ब्यूरो)।सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बलबीर सिंह चौहान ने कहा कि हमारी संस्कृति में प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र की व्यवस्था व्याप्त है। 

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उन्होंने महाभारत से शांतनु और सत्यवती के प्रसंग का उदाहरण दिया।नारी को समाज के विकास में आगे आने पर भी उन्होंने जोर दिया। न्यायमूर्ति शनिवार को वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के तत्वावधान में वैदिक विज्ञान केन्द्र सभागार में आयोजित दो दिवसीय अन्तर राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान ने धारा-313 सीआरपीसी का जिक्र करते हुए सूरदास के पद में वर्णित 'मैया मैं नहीं माखन खायो' का उल्लेख किया। 

गोष्ठी में विशिष्टअतिथि,प्रो.स्वाती भट्टाचार्य (अमेरिटस प्रोफेसर, हारवर्ड डिविनीटीस्कूलअमेरिका) ने धर्म और नैतिकता की वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। 

उद्घाटन सत्र में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शांतिश्री पण्डित ने भारतीयों को औपनिवेशित मंतव्यों से बचने की सलाह दी। श्री स्वामी नारायण, गुरुकुल विश्वविद्यालय प्रतिष्ठानम् के सद्गुरु माधव प्रियदर्शी स्वामी ने गुरुकुल शिक्षा पद्धति को आवश्यक बताते हुए कहा कि भारतीय सभ्यता सर्वोत्तम सभ्यता है। धर्मशास्त्रों को देह से देव तक पँहुचानें की यात्रा बताया। उन्होंने कहा जब नारीशक्ति आगे आने लगती है तब भारतीय संस्कृति का सूर्योदय निश्चित हो जाता है।

अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम संयोजक और केन्द्र के समन्वयक प्रो. उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कुलगुरू प्रो.वी.के. शुक्ला ने किया। 

सभागार में 'वैदिक ट्रेडिशन ऑफ ला एण्ड लीगल सिस्टम', 'वैदिक आचारशास्त्र' और 'सोवीनियर ऑफ द कांफ्रेंस' पुस्तकों का विमोचन भी हुआ। कार्यक्रम में 20 राज्यों एवं 10 देशों से आये हुए 300 प्रतिभागियों ने भाग लिया। 

पांच तकनीकी सत्र आयोजित,,, 

संगोष्ठी में परम्परागत भारतीय न्याशास्त्र और पश्चिम के न्याय की अवधारणा के मध्य संवाद तथा अपराधिक विधिक परिपेक्ष्य सिद्धान्त से व्यवहार तक, पांच तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। 

इसमें मुख्य रूप से झारखण्ड के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस.एन. पाठक, केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के.पी. शंकरन ने भी विचार रखा 

संगोष्ठी में कुल 70 प्रतिभागियों ने अपने-अपने शोध पत्र पढ़े, जिसमें प्रो. पी.के. मुखोपाध्याय, प्रो. डी.पी. वर्मा, प्रो. राजाराम शुक्ल, प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, कुलपति केन्द्रीय, संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, प्रो. राममूर्ति चतुर्वेदी भी शामिल रहे।