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महाशिवरात्रि विशेष::देवरिया के दुग्धेश्वर नाथ मंदिर का महाकाल से भी है नाता, जानिए यहां की महत्ता,,,।

महाशिवरात्रि विशेष::देवरिया के दुग्धेश्वर नाथ मंदिर का महाकाल से भी है नाता, जानिए यहां की महत्ता,,,।



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एजेंसी डेस्क : (गोरखपुर, ब्यूरो)।उत्तर प्रदेश में देवरिया के रूद्रपुर का दुग्धेश्वर नाथ मंदिर छोटी काशी के रूप में प्रसद्धि है। यहां के शिवलिंग स्वयंभू हैं। वैसे तो यहां वर्ष भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है,लेकिन महाशिवरात्रि, अधिकमास और श्रावण मास में देश के काने कोने से श्रद्धालु पूजन अर्चन के लिये आते हैं।

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मंदिरके पुरोहित रमाशंकरभारती ने बताया कि यहां के शिवलिंग को उज्जैन के महाकालेश्वर की तरह ही इसे पौराणिक महत्ता मिली हुई है। यह उनका उपलिंग है। त्रयंबकेश्वर भगवान के बाद रूद्रपुर में बाबा भोले नाथ का शिवलिंग धरातल से करीब 15 फीट नीचे हैं।

यहां के शिवलिंग को उज्जैन के ज्योतर्लिगिं का उपलिंग माना जाता है,जो नीसक पत्थर का बना है। मान्यता है कि यहां के शिवलिंग को छूने मात्र से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। महाकाल के दरबार में सच्चे मन से आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं। 

मंदिर के बारे में प्रमाण है कि ईसा से 332 वर्ष पूर्व महाराज दीर्घवाह के पुत्र ब्रजभान जन्हिें ब्रह्मा तथा वशष्ठि सेन भी कहा गया है वह अपने कुछ साथियों के साथ अयोध्या से पूरब की तरफ चले और रुद्रपुर में डेरा डाल दिए,उस समय यह क्षेत्र जंगलों से आच्छादित था तथा जंगली जानवरों के भय से उनके साथी मचान बनाकर रहते थे।

बताया जाता है कि कुछ सैनिक रात में पहरा देते थे। एक दिन पहरा दे रहे एक सैनिक ने देखा एक गाय ब्रह्म बेला में एक स्थान पर चुपचाप खड़ी है और उसके थन से स्वत: दुग्ध की धारा गिर रही है। कुछ देर बाद गाय चली गई। रोजाना यह क्रिया देख सैनिक ने अपने अन्य साथियों से इसका उल्लेख किया और साथी भी यह देख अचम्भित रह गये। 

इसकी जानकारी सैनिकों ने राजा को दी तो उन्होंने उस स्थल की खोदाई शुरू करा दी। ज्यों-ज्यों ही उस स्थल की खोदाई होती शिवलिंग नीचे चले जाते थे। अंत में खोदाई बंद कर दी गई। राजा ने पेड़ों को कटवाकर उस स्थल को साफ कराया और वेदपाठी ब्राह्मणों से रूद्राभिषेक कराया। इस स्थान का नाम दुग्धेश्वरनाथ रखा गया।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल दधीचि और गर्ग मुनियों की तपोस्थली रहा है। क्षेत्र में भगवान शिव के नाम पर रुद्रपुर, गौरी, धतुरा, बौड़ी सहित दर्जनों गांवों के नाम बसे हैं तथा सप्तकोशीय में भोलेनाथ के शिवलिंग हैं। 

देश के जाने-माने लोगों ने मंदिर परिसर में जलाभिषेक किया है जिनमें स्व.इंदिरा गांधी, वीपी सिंह, राजीव गांधी,सोनिया गांधी, राहुल गांधी, योगी आदत्यिनाथ, मोतीलाल वोरा, कलराज मश्रि शामिल हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां मेला भी लगता है। आस-पास के अलावा दूर-दराज से आए लोग दुकानें सजाते हैं। इनमें बिहार से भी लोग आते हैं। 

दधीचि और गर्ग ऋषि की तपस्थली के रूप में है मान्यता,,,,,,

देवाधिदेव भगवान शिव के नाम से मशहूर पवित्र नगरी रुद्रपुर के समीप स्थित तमाम गांव भगवान शिव के नाम से बसे हैं। रुद्रपुर के आसपास के कई गांव भगवान शिव के नाम से जाने जाते हैं। जैसे- रुद्रपुर, गौरी, बैतालपुर, अधरंगी, धतुरा, बौड़ी गांव। सावन और अधिक मास में क्षेत्र शिवमय हो जाता है।

भगवान शिव के महिमा से यह क्षेत्र प्रभावित रहा है। भक्त अपनी मनोकामना को लेकर बारह महीने यहां जलाभिषेक करते हैं लेकिन फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में भक्त जलाभिषेक करने आते हैं।

यह स्थान दधिचि और गर्ग ॠषि की तपोस्थली माना जाता है। सावन के महीने में हजारों की संख्या में शिव भक्त बरहज स्थित सरयू नदी से जल भरकर लाते हैं और बाबा दूधेश्वर नाथ का जलाभिषेक करते हैं। इस मंदिर पर रुद्राभिषेक साल के 12 महीने होता है।