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महाशिवरात्रि : पंचक्रोशी परिक्रमा की तैयारी में जुटे शिवभक्त,शुक्रवार देर शाम से शुरू होगी यात्रा,,,।

महाशिवरात्रि : पंचक्रोशी परिक्रमा की तैयारी में जुटे शिवभक्त,शुक्रवार देर शाम से शुरू होगी यात्रा,,,।



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(पंचकोश परिक्रमा यात्रा विशेष) महाशिवरात्रि पर्व की पूर्व संध्या पर काशीपुराधिपति की नगरी में श्रद्धालु 80 किलोमीटर दूरी की पंचक्रोशी परिक्रमा करते हैं।इसको लेकर शिवभक्तों में खासा उत्साह होता है। इसकी शुरूआत कल,शुक्रवार देर शाम से होगी। 

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श्रद्धालु पंचक्रोशी परिक्रमा की तैयारियों में जुटे,,,,,,,

अनादि तीर्थ मणिकर्णिका घाट पर चक्रपुष्करणी कुंड और पवित्र गंगा में स्नान कर लाखों श्रद्धालु संकल्प लेने के साथ पंचक्रोशी यात्रा पर निकलते हैं।

कंदवा स्थित कर्दमेश्वर महादेव, भीमचंडी, रामेश्वर, शिवपुर, कपिलधारा, आदिकेशव होते हुए 80 किमी की दूरी नंगे पांव शिवभक्त 10 घंटे या 12 से 20 घंटे में पूरी करते हैं। 

यात्रा का समापन महाशिवरात्रि पर शनिवार कोमणिकर्णिकाघाट पर संकल्प छुड़ाकर होगा।काशी से निकलने वाली नियमित ओम नम: शिवाय प्रभातफेरी के संस्थापक डॉ. मृदुल मिश्र बताते हैं कि पंचक्रोशी यात्रा के एक दिन पहले यात्री या तो व्रत रखते हैं अथवा अल्पाहार कर ढुंडिराज का पूजन-अर्चन करते हैं। 

श्री काशीविश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में स्थित मंदिर में सुरक्षा कारणों से रोक-टोक के चलते शिवभक्त मणिकर्णिका घाट पर ही गंगा स्नानकर मौन संकल्प लेकर पन्चाक्षरी महामंत्र यानी 'हर-हर महादेव शम्भो, काशी विश्वनाथ गंगे' को मन में जप यात्रा की सफलता की कामना महादेव से करते हैं।

डॉ मिश्र बताते है कि पंचक्रोशी परिक्रमा पथ पर 108 तीर्थों के होने का जिक्र स्कंद पुराण में है। डॉ मिश्र ने पंचक्रोशी परिक्रमा को लेकर पौराणिक मान्यता का उल्लेख किया। 

कहा जाता है कि अपने नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर लेकर तीर्थ कराने जा रहे बालक श्रवण की जान राजादशरथके शब्दभेदी बाण से चली गई थी।त्रेतायुग में अपने पिता को दोषमुक्त कराने के लिए भगवान राम ने काशी में यह परिक्रमा की थी।

तब वे जिन पांच पड़ावों से होकर गुजरे थे, वे बाद में तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इन पड़ावों में भीमचंडी, कर्दमेश्वर, रामेश्वरम, कपिलधारा और आदिकेशव के नाम शामिल हैं। 

डॉ मिश्र बताते है कि यात्रा का पहला पड़ाव कर्दमेश्वर महादेव चितईपुर कन्दवा में स्थित है। शिवभक्त यहां पहुंचकर मंदिर से सटे हुए कर्दम कूप का दर्शन करते हैं।

इस कूप से सटा हुआ ही शंकर जी के मंदिर में सोमनाथेश्वर हैं। यात्री इनका भी दर्शन-पूजन करते हैं। इनके दर्शन का भी बड़ा माहात्म्य है। कर्दम कूप से दक्षिण की ओर सटा हुआ विरूपाक्षण हैइनका दर्शन भी यात्री करते हैं। इसी मंदिर के उत्तर दिशा में नील कण्ठेश्वर का मंदिर है यात्री इनका आशीर्वाद भी लेते हैं, इनके दर्शन के बाद यात्री कर्दमेश्वर महादेव के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। 

पंचकोशी यात्रा का दूसरा पड़ाव भीमचंडी है। पंचक्रोशी यात्री भीमचण्डी विनायक के मंदिर में जाकर दर्शन-पूजन करते हैं। इसी मन्दिर से सटा हुआ गन्धर्व का मंदिर है। यहां भी यात्री पहुंचकर दर्शन-पूजन करते हैं। इसके आगे बढ़ने पर भीमचण्डेश्वर का मंदिर है। यात्रा क्रम में यात्री इनका दर्शन-पूजन भी करते है। इस मंदिर के दक्षिण तरफ भीमचण्डी देवी का मंदिर है। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान इनके दर्शन-पूजन का भी विधान है। 

डॉ. मिश्र ने बताया कि यात्रा का तीसरा पड़ाव रामेश्वर है। रामेश्वर मंदिर में भी दर्शन-पूजन के बाद चौथा पड़ाव शिवपुर, कपिलधारा के बाद अन्तिम पड़ाव वरुणा, गंगा संगम तीर्थ आदिकेशव है। जो यहीं पर स्थित है, आदिकेशव का विशाल मंदिर। मंदिर में स्थित शिव जी को ही केशवेश्वर कहा जाता है। इसी के पास संगमेश्वर के ऊपर आदि केशव विष्णु जी की प्रतिमा है। यात्री इनका दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद लेते हैं।