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फिरोजाबाद : भाईचारे की मिसाल, मुस्लिम समाज करता है होली पर कृष्ण-बलराम डोले का स्वागत, 140 वर्ष पुरानी परंपरा,,,।
एजेंसी डेस्क : (फिरोजाबाद, ब्यूरो)।ये शहर है अमन का.. यहां की फिजा है निराली..। राज फिल्म का ये गाना शहर की आवोहवा पर फिट बैठता है। यहां होली के दिन कृष्ण बलराम का डोला जब मुस्लिम क्षेत्र से निकलता है तो वहां लोग स्वागत में खड़े हो जाते हैं। आयोजकों को पुष्प मालाएं पहनाते हॅैं। कोल्ड ड्रिंक, पानी बांटते हैं और सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी संभालते हैं। ये काम साल दो साल से नहीं बल्कि 140 साल पुरानी परंपरा है।
तीन दिवसीय होता है कार्यक्रम,,,,,,,
होली पर शहर में तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन होते हैं। फाल्गुन की चतुर्दशी को कृष्णा पाड़ा स्थित मंदिर से भगवान शंकर का डोला निकाला जाताी है। पूर्णमासी को सदर बाजार स्थित राधा कृष्ण मंदिर से श्री कृष्ण का डोला निकलता है। पड़वा को भगवान कृष्ण अपने भाई बलराम के साथ राधा मोहन मंदिर से रथ पर निकलते हैं। जो विभिन्न मार्गों से होता हुआ शाम को रोडवेज बस स्टैंड के सामने जलकल संस्थान पहुंचता है। यहां दोपहर से कंस मेले का आयोजन होता है। कृष्ण-बलराम कंस का वध करते हैं। कृष्ण बलराम का डोला नगर भ्रमण के दौरान इमामबाड़ा क्षेत्र से भी गुजरता है।
तीन स्थानों पर इस डोले का स्वागत होता है,,,,,,,
बाबरी विध्वंस को दौर रहा हो या राम मंदिर पर कोर्ट निर्णय। यहां से डोला निकालते समय आयोजकों को कभी भी किसी अनहोनी का संशय नहीं रहा। इस क्षेत्र के निवासियों ने हमेशा ही सूझबूझ और आपसी भाईचारे की मिसाल पेश की। इस क्षेत्र में एक दो नहीं बल्कि तीन स्थानों पर इस डोले का स्वागत होता है। मुस्लिम समाज के लोग स्वागत के लिए तैयार मिलते हैं।वेआयोजकों को फूल मालाएं पहनाते हैं। कोल्ड ड्रिंक, पानी पिलाते हैं। इसके बाद कुछ दूरी तक डोले के साथ भी चलते हैं।
इमामबाड़ा क्षेत्र में तंग गलिया हैं,,,,,,,
होली पर तीन दिन डोले निकलते हैं। ये परंपरा 1982 से शुरू हुई थी। होली वाले दिन मुस्लिम समाज के लोग इन डाेलों का अपने क्षेत्र में स्वागत करते हैं। इमामबाड़ा क्षेत्र में तंग गलिया हैं।वहां से डोला निकलने में कोई परेशानी न हो इसके लिए वहां के दुकानदार दुकानों के आगे लगे तिरपाल और पल्लियां खोलते जाते हैं। तीन स्थानों पर स्वागत किया जाता है। -आरपी सिंह, रामलीला कमेटी के पूर्व पदाधिकारी।
कृष्ण बलराम के डोले का स्वागत करने की परंपरा वर्ष 1885 में हमारे पूर्वज एवं तत्कालीन शहरकाजी हकीम काजी हाजी सूफी सैय्यद अमजद अली ने की थी। वर्ष 2005 से हम अपने पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ाते इस कार्य को कर रहे हैं। यहां राम बरात का भी स्वागत होता है। इसके पीछे उद्देश्य यही है कि शहर में अमन-चैन बना रहे। हम सब एक दूसरे के पूरक हैं। -शहरकाजी सैय्यद शाहनियाज अली, महासचिव ईदगाह कमेटी।