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वाराणसी : बाबा महाश्मशाननाथ का श्रृंगार महोत्सव 26 मार्च से, अंतिम दिन नगर वधुएं देंगी नृत्यांजलि,,,।

वाराणसी : बाबा महाश्मशाननाथ का श्रृंगार महोत्सव 26 मार्च से, अंतिम दिन नगर वधुएं देंगी नृत्यांजलि,,,।



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एजेंसी डेस्क : (वाराणसी,ब्यूरो)।चैत्र नवरात्रि के पंचमी से सप्तमी तक चलने वाली मणिकर्णिका घाट स्थित बाबा महाश्मशान नाथ का तीन दिवसीय शृंगार महोत्सव 26 मार्च से 28 मार्च तक चलेगा। 

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महोत्सव में प्रत्येक वर्ष की भांति रुद्राभिषेक, भोग-आरती व भंडारे का आयोजन किया जायेगा।28 मार्च को महोत्सव के अंतिम दिन नगर वधुओं द्वारा महाश्मशान नाथ को नृत्यांजलि प्रस्तुत की जायेगी।

चैत्र नवरात्रि में ऐसी मान्यता है कि रूठे शिव को मनाने शक्ति स्वयं मशान पर आती हैं। इस वर्ष महोत्सव को लेकर महाश्मशान सेवा समिति के अध्यक्ष चैनु प्रसाद गुप्ता ने बताया कि 26 मार्च को बाबा का वैदिक परम्परा नुसार रुद्राभिषेक व भव्य पूजन होगा। 

27 मार्च को भोग आरती के बाद विशाल भंडारा व सांयकाल सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगी। 

28 मार्च को सांयकाल 6 बजे से बाबा का तांत्रोक्त विधि से पूजन पंचमकार पूजन किया जायेगा।

इसके बाद नगर वधुओं द्वारा नृत्यांजलि रात्रिपर्यन्त दी जायेगी, चैनु गुप्ता ने बताया कि यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। 

जिसमें यह कहा जाता है, राजा मानसिंह द्वारा जब महाश्मशान नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था, तब मंदिर में संगीत के लिए कोई भी कलाकार आने के लिए तैयार नहीं हुआ था। संगीत कलाकारों के न आने से राजा मानसिंह काफी दुखी हुए और यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगरवधुओं तक जा पहुंचा। 

नगरवधुओं ने डरते-डरते अपना संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका उन्हें मिलता है तो काशी की सभी नगरवधुएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मशानेश्वर को अपनी भावांजलि प्रस्तुत कर सकती हैं। 

यह संदेश पाकर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और ससम्मान नगरवधुओं को आमंत्रित किया और तब से यह परंपरा चली आ रही है।

वहीं, दूसरी ओर नगरवधुओं के मन में यह आया कि अगर वह इस परंपरा को निरंतर बढ़ाती है तो उनके इस नरकीय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। 

आज सैकड़ों वर्ष बीतने के बाद भी यह परंपरा जीवित है, और बिना बुलाये नगरवधुएं कहीं भी रहें, चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि को काशी के मणिकर्णिका धाम स्वयं आ जाती हैं।