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होली विशेष लेख,,होली की खुमार :: चढ़ल बा मस्ती हो शरीर में चुस्ती हव, कोई न बोली आ गयल हौ होली जोगीरा सारारर जोगिरा सारा रा रा रा,,,।

होली विशेष लेख,,होली की खुमार :: चढ़ल बा मस्ती हो शरीर में चुस्ती हव, कोई न बोली आ गयल हौ होली जोगीरा सारारर जोगिरा सारा रा रा रा,,,।



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एजेंसी डेस्क : (वाराणसी, ब्यूरो)। देखा भैया, अब होली का खुमार चढ़े लगल हौ और कोई न बोली आ गयल हौ होली जोगीरा सारा रा,,रा,, सारा रा,,रा,,रा,,,Oacute;।

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अब यह मौज-मस्ती, हुल्हड़बाजी ढौलबाजी मस्ती होली के पर्व पर देखने को नहीं मिलती है, नहीं तो एक समय था जब रंगों के त्योहार होली के दस या फिर 15 दिन का समय रहता था तभी बनारसी अंदाज में सभी होलियाना मूड में आ जाते थे। होलियारों की टोली की हुल्हड़बाजी गली मोहल्लों में देखने को मिलती थी। या कवि सम्मेलन का मंच सज जाता था। 

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मंच से ही शहर के दिग्गज लोगों को अपने शब्दों की बारिश कर उपनाम दिए जाते थे होली के पर्व पर यह सब अब बीते दिनों की बात हो गयी है। अब सिर्फ होली के दिन ही वह भी दोपहर 12 बजे तक हुल्हड़बाजी देखने को मिलती है। पुरनिए बताते हैं कि अब के बच्चे मोबाईल युग के हो गए हैं। ज्यादातर बनारसी अपने बच्चों को बाहर पढऩे के लिए भेजने लगे हैं, ऐसे में होली पर मस्तो की टोली कहांसे निकलेगी

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रंगभरी एकादशी पर होती बाबा दरबार से शुरूआत,,,,,,,

त्रलोक्य से न्यारी काशी नगरी की होली बाबा विश्वनाथ दरबार से शुरू होती है। रंग भरी एकादशी के दिन सभी लोग बाबा संग अबीर-गुलाल खेलते थे। बाबा से अनुमति लेने के बाद सभी होलियाना माहौल में रंग जाते थे कोई ऐसा मोहल्ला या गली नहीं रहती थी, जहां होलियारों की टोली हुल्लड़ न मचाती हो।

अर्थी सजाकर मांगते थे पैसे,,,,,,,

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होलियारों की टोली अर्थी सजा कर सड़क पर रख देती थी। अर्थी पर रंग, अबीर, गुलाल के साथ माला-फूल भी लाद देते थे। अर्थी देखकर हर कोई आने-जाने वाला व्यक्ति पैसा फेंकना शुरू कर देता था। वही पैसा बटोरकर बच्चे हों या बड़े सभी हुड़दंग करते थे। यहीं नहीं मटका में रंग भरकर आने-जाने वालों से कहते थे, भईया ई मटकवा दुकान पर पहुंचा दा, जैसे ही वह व्यक्ति मटका सिर पर रखता था, पीछे से डंडा मारकर फोड़ देते थे, और मटका में भरे रंग से वह सराबोर हो जाता था।

बुढ़वा मंगल तक चलता था यह सिलसिला,,,,,,,

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सुदामा तिवारी उर्फ सांड़बनारसी का कहना है कि होली पर मस्ती का यह सिलसिला बुढ़वा मंगल तक चलता था।इस दौरान जगह जगह होली मिलन समारोहों की धूम देखने को भी मिलती थी। बनारस में सब कुछ बदलने के बाद भी लोग होली की मस्ती में डूबना नहीं भूलते। अब तो होली के दिन पूरे शहर की गलियों व नुक्कड़ों पर होलिका दहन के साथ ही युवकों की टोलियां फाग गाती हुई रात भर हुड़दंग करती हैं। कई स्थानों पर ढोल-नगाड़ों की थाप व भोजपुरी फिल्मी गीतों पर डांस होता है। दूसरे दिन पूरा शहर रंगोत्सव में डूब जाता है।

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होली पर निकलती है बारात,,,,,,,

दमदार बनारसी का कहना है कि पहले होली पर मस्ती की बात ही कुछ आउर रहलअब सभी लोगन अपने बच्चन को पढऩ के वास्ते बाहर भेज दिएन ऐसन में गली, मोहल्लों में मस्ती की टोली कऊन निकाली बबुआ, ई ससुरा मोबाइलिया का निकल गईल बा सगर लइकन त अब मोबईले में व्यस्त हऊवन।अब सिर्फ होलीया के दिनवा ही कुछ मौज-मस्ती ही देखन के निरहुआ मिलत हहुए।

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और बारात लौट जाती है,,,,,,,

मुकीमगंज से बैंड-बाजे के साथ निकलने वाली होलीया बारात में बाकायदा दूल्हा रथ पर सवार होएला, बारात जब अपने नीयत जगहवा पर पहुंचती है तो दुल्हन पक्ष की महिलाएं परंपरागत ढंग से दूल्हे का परछन भी करती हैं। मंडप में दुल्हन भी आती है, लेकिन वर-वधू के बीच बहस शुरू होती है और दुल्हन शादी से इंकार कर देती है। बारात रात में लौट जाती है।

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चौसट्टी देवी का दर्शन होलिया के दीनवा जरूरी बा,,,,,,,

हां एक बात लोग याद रखते हैं होली वाले दिन काशी में चौसट्टी देवी का दर्शन करना लोग नही भूलते है। हालांकि अब पहले की अपेक्षा लोगों की भीड़ कम हो गई है। बनारस की होली में कभी अस्सी का चर्चित कवि सम्मेलन भी था। मशहूर हास्य कवि स्व. चकाचक बनारसी, पं. धर्मशील चतुर्वेदी, सांड़ बनारसी, बदरी विशाल आदि शामिल होते थे। चकाचक के निधन के बादअस्सी के हास्य कवि सम्मेलन पर विराम लग गया। इसके बाद इसका स्थान टाउनहाल मैदान में होने वाले हास्य कवि सम्मेलन ने ले लिया। बदलते दौर में वह भी बंद हो गया।कवि सम्मेलन में भी रात तक लोग इसका आनंद लेते थे। 

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होली के कवि सम्मेलन में लगते थे खूब ठहाके,,,,,,,

सांड बनारसी बताते हैं कि टाउनहाल मैदान (मैदागिन) में अनूठा कवि सम्मेलन होता था, जिसमें बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक और काव्य प्रेमी जुटते थे। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि यहां सिर्फ गालियों की कविता पढ़ी जाती थी, जिसमें होती थी व्यंग्य की बौछार, यहां श्रोताओं को कोई रचना उत्तम नहीं लगती तो हूट नहीं करते, बल्कि बनारसी अंदाज में कहते थे, भाग-भाग,,, भो,,,के,,,।