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जीवनी::अतीक अहमद, इलाहाबाद में तांगा हांकने वाले का बेटा कैसे बना कुख्यात बाहुबली, जानिए अतीक के अपराध की पूरी कुंडली,,,।

जीवनी::अतीक अहमद, इलाहाबाद में तांगा हांकने वाले का बेटा कैसे बना कुख्यात बाहुबली, जानिए अतीक के अपराध की पूरी कुंडली,,,।



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एजेंसी डेस्क : (ब्यूरो,प्रयागराज)। अतीक अहमद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज का वहशातिरअपराधी है, जिसने अपराध की दुनिया से होते हुए सियासत की दुनिया में कदम रखा और आज की तारीख में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार उसे गुजरात केसाबरमती जेल से निकालकर प्रयागराज ला कर अदालत में पेश की और अदालत ने उसे आजीवन कारा वास की सजा सुनाई। आज हम उसी अतीक अहमद के काले किस्सों को बयां कर रहे है। जिसकी स्याह परछाई से प्रयाग राज में अब भी कत्ल-ओ-गारत का खेल चल रहा है। 

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अतीक अहमद के पिता तांगा हांकते थे,,,,,,,

अतीक अहमद की अपराधिक कुंडली को खंगालें तो पता,चलता है कि वो किशोर अवस्था से ही अपराधी मानसिकता का है। उसके जुर्म की फेहरिश्त यूपी पुलिस तब से दर्ज कर रही है,जब प्रयागराज को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था। अतीक का जन्म उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती में 10 अगस्त 1962 को हुआ था। पिता फिरोज अहमद इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर तांगा हांकते थे। बेहद गरीब परिवार से आने वाले अतीक अहमद का हाथ जब पहली बार इंसानी खून से रंगे तो वह महज 17 साल का था। जी हां, अतीक अहमद का नाम पहली बार पुलिस डायरी में उस वक्त दर्ज हुआ था, जब उसकी मूंछ भी नहीं आयी थी।

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70के दशक में जब अतीक अपने अपराधिक अतीत को लिये5फीट 6इंच का जवान हुआ तो वो इला हाबाद की गलियों का कुख्यात बमबाज बन चुका था। कहते हैं कि इलाहाबाद में बमबाजी का सिललिसा अतीक ने ही शुरू किया। इलाहाबाद के चकिया मोहल्ले में अतीक के परिवार का ठिकाना हुआ करता था। दिन भर तांगा हांकने के बाद पिता फिरोज किसी तरह से दो जून की रोटी का इंतजाम करते थे।

हाईस्कूल में फेल होने के बाद बमबाज बना अतीक,,,,,,,

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बचपन की गरीबी अतीक को बुरी तरह से सालती थी, रही-सही कसर साल 1979 में उस समय पूरी हो गई,जब अतीक हाईस्कूल में फेल हो गया,पिता को इलाहा बाद स्टेशन पर तांगा हांकते देख दसवीं फेल अतीक ने तय किया अमीर बनना है।जरायम का पेशा अतीक को ज्यादा मुफीद लगा और अमीर बनने की चाहत में पहले वो हत्यारा बना और उसके बाद रंगदारी, बमबाजी करते हुए चकिया समेत पूरे इलाहाबाद में फिरोज तांगेवाला अतीक के तौर पर कुख्यात हो गया।

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70-80 के दरम्यानी दशक में इलाहाबाद में चांद बाबा नाम के अपराधी का खौफ हुआ करता था। पुलिस भी चांद बाबा के चौक, मीरगंज और रानीमंडी की तरफ जाने से खौफ खाती थी। इसी चांद बाबा के रसूख को कम करने के लिए सफेदपोश नेता और पुलिस ने बदमाशी की दुनिया में नये-नये कदम रखे अतीक का सहारा लिया लेकिन वो भूल गये कि अपराधी तो अपराधी ही होता है। जिस चांद बाबा को खत्म करने के लिए उसे बरक्स अतीक को खड़ा करने की कवायद की गई। आगे चलकर वही अतीक पुलिस के लिए चांद बाबा से भी भारी सिर दर्द साबित हुआ और आज तक परेशानी का सबब बना हुआ है।

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साल 1986 में यूपी में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र की सत्ता में राजीव गांधी थे। इलाहाबाद के चकिया में अपना खासा दबदबा बना चुका अतीक पर पुलिस ने उस समय सख्ती की लेकिन राजनीतिक दबाव में पुलिस पीछे हट गई। साल 1988 में हत्या के एक केस में अतीक पुलिस के निशाने पर था लेकिन उसकी भनक अतीक को लग गई और वो भेष बदलकर इलाहाबाद की कोर्ट में पहुंचा और सरेंडर करके जेल चला गया।