(संपादकीय) बिहार न्यूज
संपादकीय :: जब कलेक्टर को कार से खींचकर पीटते-पीटते मार डाला गया, 29 साल पुरानी वो दुर्दांत कहानी,,,।
संपादकीय : बिहार के माफिया, गुंडाराज में किसी के भी रोंगटे खड़े कर देने वाला ये खौफनाक वाकया बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का है, तारीख थी 5 दिसंबर 1994 रात का नहीं, बल्कि दिन में दोपहर का वक्त था। चारों तरफ रोशनी थी। हर किसी की करतूत को हर कोई खुली आंखों से देख सकता था। गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया अपनी गाड़ी से हाईवे पर आ रहे थे। लेकिन तभी भीड़ ने उनकी गाड़ी को जबरन रोक लिया और गाड़ी से बाहर खींचकर उन्हें वहीं पर गोली मार दी। ये बिहार के जंगलराज का एक छोटा सा नजारा था।
डीएम जी. कृष्णैया पटना के करीब शहर हाजीपुरमें एक खास मीटिंग खत्म करके मुजफ्फरपुर हाईवे होकर गोपालगंज जा रहे थे। जहां उनकी ड्यूटी थी। रास्ते में खबड़ा गांव के पास लोग छोटन शुक्ला का शव रखकर प्रदर्शन कर रहे थे, प्रशासन के खिलाफ नारे लगा रहे थे, उसी बीच दुर्भाग्यवश डीएम जी. कृष्णैया की गाड़ी आ गई और उग्र भीड़ ने हमला कर दिया।
निर्दोष डीएम पर क्यों हुआ जानलेवा हमला ?
दरअसल, इस वारदात से एक दिन पहले उत्तर बिहार के दूसरे सबसे बड़े शहर मुजफ्फरपुर में छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी। मुजफ्फरपुर जिले में छोटन शुक्ला ने अपना अंडरवर्ल्ड बना रखा था वह शहर का सबसे बड़ा गैंगस्टर था। उसकी हत्या से चारों तरफ भयंकर रोष फैला हुआ था। छोटन शुक्ला के समर्थकों को जिस पर शक होता, उस पर टूट पड़ते।
डीएम की गाड़ी पर लाल बत्ती देखते ही नारे लगा रहे लोग भड़क उठे, और गाड़ी पर पत्थरबाजी शुरू कर दी, हालांकि सालों बाद की जांच रिपोर्ट में यह बताया गया था कि गाड़ी में बैठा ड्राइवर और सुरक्षाकर्मी चीखते रहे कि वो मुजफ्फरपुर के कलेक्टर नहीं, बल्कि गोपालगंज के हैं लेकिन हमलावरों की भीड़ ने इनकी आवाज को अनसुना कर दिया।
डीएम कृष्णैया की हत्या के बाद क्या हुआ ?
इस हत्याकांड से बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में सनसनी फैल गई। कहा गया बिहार केवल ‘गंगा’ और ‘गंडक’ का नहीं बल्कि गुंडों का भी स्टेट है। माफिया गिरोह और बाहुबली यहां की दो बड़ी पहचान है। बिहार में एक समय बाहुबलियों का स्वर्णकाल था। और उसी स्वर्णकाल में एक ईमानदार, मेहनती जिलाधिकारी की बिना किसी गलती के मॉब लिंचिंग हुई।
मामला सबसे पहले निचली अदालत में गया, जहां से साल 2007 में तब के एक और बाहु बली नेता आनंद मोहनकेअलावा छोटनशुक्ला के भाई मुन्नाशुक्ला, अखलाक अहमद और अरुण कुमार को फांसी की सजा सुना दी गई, लेकिन पटना हाई कोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया, हालांकि साल 2008 में सबूतों के अभाव में इन्हें कोर्ट से बरी कर दिया गया जबकि आनंद मोहन को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। वो अब भी जेल में हेैं।
कौन थे डीएम जी. कृष्णैया ?
एक सरकारी अधिकारी डीएम जी.कृष्णैया की हत्या कोअपवाद की श्रेणी में माना गया था। वो मूलत: तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे। और 1985 के बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी थे। उनकी छवि ईमानदार अफसर की थी।
जी. कृष्णैया की शख्सियत के बारे में पूर्व जीडीपी अभयानंद ने एक बार सोशल मीडिया पर उनकी ईमानदारी और सादगी के बारे में लंबी पोस्ट लिखी थी। उन्होंने लिखा था- जिले का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो यह कहे कि उसने कृष्णैया जी को कुछ भी दिया हो। वहीं कोई ऐसा नहीं था जो यह कह सके कि जो उनके घर न गया हो और एक कप चाय न पी हो।
ऐसी शख्सियत वाले वह आईएएस अधिकारी थे, जिन्हे बिहार के जंगल राज, गुंडाराज ने अनायास ही निगल लिया था।