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पड़ताल::गोरखपुर Police की करतूत, अफसरों के आवास के सामने 100 रुपये में लगवाती है ठेला, ऑटो चालकों से भी होती है वसूली,,,।

पड़ताल::गोरखपुर Police की करतूत, अफसरों के आवास के सामने 100 रुपये में लगवाती है ठेला, ऑटो चालकों से भी होती है वसूली,,,।



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पड़ताल खबर:::यातायात पुलिस कितना भी अभियान चलाकर वाहनों पर कार्रवाई कर ले, लेकिन जब तक खुद उनके साथी नहीं सुधरेंगे तब तक जाम और अवैध स्टैंड की समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसके लिए स्थानीय,चौकी पुलिस को भी आगे आना होगा। एसएसपी आवास के सामने गोलघर में लगने वाले ठेले हों या गोरखपुर विश्वविद्यालय व रुस्तमपुर ढाला पर खड़े होने वाले ऑटो, पुलिस इनसे 20 से 100 रुपये तक की वसूली करती है। मीडिया संस्थान की पड़ताल में ऐसी ही हकीकत सामने आई है।

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बाहरी व्यक्तियों से कराते हैं वसूली,,,,,,,

पुलिस ने इसकेलिए अलग-अलग जगहों पर बाहरी व्यक्तियों को लगा रखा है, जो सड़क पर ऑटो के खड़े होते ही उनसे स्टैंड के नाम पर 20 से 40 रुपया वसूल लेते हैं। इसके बाद से वह बेफिक्र होकर चौराहे पर खड़ा होकर सवारी भरते रहते हैं। फिर चाहे पीछे जाम लगे या आमजन को आने-जाने में दिक्कत हो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर यातायात पुलिस कार्रवाई के लिए आगे बढ़ती है तो इशारा मिलने के बाद स्थानीय पुलिस वाला उनके संरक्षण में खड़ा हो जाता है।

ठेले वालों से उन्हीं का साथी वसूलता है पैसा,,,,,,,

एसएसपी आवास के सामने लगने वाले ठेलों से उनके बीच का ही एक साथी प्रति ठेला 100 रुपये वसूलता है, जो रात में गोलघर पुलिस को ठेलों की संख्या के हिसाब से पैसा देकर घर जाता है। इस चौराहे पर देवरिया व कुशीनगर जिले समेत अन्य जगहों के रहने वाले लोग ठेला लगाते हैं। पुलिस ने हर आठ से 10 ठेला के बीच में एक को वसूली के लिए लगा रखा है। गोलघर और आसपास करीब 100 से अधिक ठेले लगते हैँ।

ठेले वाले से बातचीत के प्रमुख अंश,,,,,,,

रिपोर्टर- भाई राजू (काल्पनिक नाम) क्या हाल है ?

ठेला वाला- सब ठीक है।

रिपोर्टर - कुछ खिलाओ।

ठेला वाला- जो कहिए।

रिपोर्टर - सामान का ऑर्डर देते हुए कब से ठेला लगा रहे हो ?

ठेला वाला- सात साल हो गया।

रिपोर्टर - यहां ठेला लगाने में कोई दिक्कत होती है क्या ?

ठेला वाला- पहले नहीं थी, अब है

रिपोर्टर - पहले क्या होता था।

ठेला वाला- लोग (पुलिस) आते थे, खाते थे और कुछ पैक कराकर चले जाते थे।

रिपोर्टर, अब क्या दिक्कत है।

ठेला वाला- अब तो 100 रुपये देने पड़ते हैं। कभी-कभी खाने के लिए भी आते हैं।

रिपोर्टर - कौन लेता है पैसा।

ठेला वाला- अपने ही बीच का साथी सभी से 100 रुपये वसूलता है और फिर रात में दुकान बंद होने के बाद पुलिस वालों को पैसा देते हुए घर जाता है। लेकिन, भइया किसी से कहिएगा नहीं, क्योंकि उन लोगों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, हम लोगों को ही भगा दिया जाएगा। रोजी रोजगार पर संकट आ जाएगा।

ऑटो वाले से बातचीत का प्रमुख अंश,,,,,,,

रिपोर्टर - क्यों भाग रहे हो ?

ऑटो वाला- सवारी है नहीं, यहां (विश्वविद्यालय चौराहा) खड़ा होते तो 20 रुपया देना पड़ता है।

रिपोर्टर - कौन पैसा लेता है, क्या नाम है उसका ?

ऑटो वाला - पुलिस के माध्यम से एक व्यक्ति वसूलता है, नाम नहीं मालूम।

रिपोर्टर - कहां से कहां तक चलते हो ?

ऑटो वाला- जहां से सवारी मिल जाएं, रुकता कहीं नहीं हूं।

रिपोर्टर - क्यों नहीं रुकते ?

ऑटो वाला- क्या रुकें, धर्मशाला रुकेंगे तो 30 रुपया देना पड़ेगा, असुरन रुके तो 20 रुपये, रुस्तमपुर रुके तो 40 रुपये देने होंगे। इसलिए चलते रहते हैं। जहां की सवारी मिलती है उसे बैठाते हुए छोड़ते चले जाते हैं।