विशेष :: अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल को समर्पित है।
आज तारीख है 12 मई, फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्मदिन। इस दिन को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आज के दिन हम बात करने जा रहे हैं काशी में अपनी अलग पहचान बना चुकीं उन नर्सों की जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य सेवा है। आज कहानी है, सुषमा जैसी नर्सों की, जिन्हें नर्स की ड्रेस से ऐसा प्यार हुआ कि वह खुद नर्स बन गईं। वह अब तक हजारों मरीजों की सेवा कर चुकी हैं। मरीजों का स्वास्थ्य ही उनकी सबसे बड़ी खुशी है। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ नर्सों की इस यात्रा की कहानी,,,,,
कहते हैं न कि धरती पर दूसरा भगवान डॉक्टर होते हैं। ऐसे ही नर्स हैं, जो लोगों की सेवा को ही अपना सबकुछ समझती हैं इनके लिए मरीजों की देखभाल ही सबसे बड़ी पूजा है। जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपने घर जाता है, तो इन्हें संतोष मिलता है। ऐसी भी नर्स हैं, जिन्होंने अपनी बेटी को भी इस प्रोफेशन में आने दिया। इनका मानना है किसी मरीज की सेवा ही ईश्वर की सेवा होती है। यही कारण है कि नर्सिंग जैसा पवित्र कार्य दुनिया में और कोई नहीं है।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने नर्सिंग को बनाया बेहतरीन पेशा,,,,,,,
पहले बात करते हैं फ्लोरेंस नाइ टिंगेल के बारे में इन्हें हर कोई जानता है, क्रीमिया युद्ध में घायल सैनिकों के उपचार के लिए नाइटिंगेल रात के अंधेरे में लालटेन लेकर घायलों की सेवा की। महिलाओं को नर्सिंग की ट्रेनिंग भी देती रहीं, नाइटिंगेल को 'लेडी विद द लैम्प' के नाम से भी जाना जाता है। आज उनके ही पदचिन्हों पर चलते हुए इस देश में न जाने कितनी नर्स हैं जिन्होंने मरीजों की सेवा को ही अपना धर्म मान लिया है। ऐसे ही नर्सिंग में जुटी काशी की महिलाओं ने भी इस क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया है।
प्रसूताओं की सेवा करने से होता है सुख का अनुभव,,,,,,,
सबसे पहले हमने बात की वाराणसी राजकीय महिला चिकित्सालय की नर्स संगीता सिंह से,,, संगीता ने बताया कि उनके मन में मरीजों की सेवा करने का भाव थ। फिर नर्सिंग की पढ़ाई की, जिसके बाद नर्स की नौकरी मिल गयी। उन्होंने कहा कि प्रसव के बाद दर्द से कराहती प्रसूताओं की सेवा करना सुख का अनुभव देता है। कभी-कभी ऐसी भी प्रसूताएं भी भर्ती होती है, जिनके परिवार में कोई भी नहीं होता। तब उनकी जिम्मेदारी और भी बढ जाती है। उनकी पूरी कोशिश होती है कि मरीज उनके सेवा व समर्पण भाव को सदा याद रखे।
सेवाभाव ऐसा कि बेटी को भी इस प्रोफेशन में भेजा,,,,,,,
राजकीय महिला अस्पताल की नर्स आशा भी किसी से अलग नहीं हैं, इनका कहना है कि किसी मरीज की सेवा ही ईश्वर की सेवा होती है। आशा ने बताया कि मैंने अपनी बेटी को भी नर्स बनाया है वह बीएचयू ट्रामा सेंटर में मरीजों की सेवा कर रही है, वह बताती हैं कि नर्स की ड्रेस से लगाव बचपन से था। अस्पताल में जाने के बाद नर्स को देखतीं तो अच्छा लगता। उनके द्वारा पहने जाने वाली ड्रेस उन्हें बहुत अच्छी लगती थी। साल 1998 में वह नर्स बनी थीं, इसके बाद से आज तब वह मरीजों की सेवा में लगातार जुटी हुई हैं।
मां अस्पताल में भर्ती थीं तभी आया नर्स बनने का खयाल,,,,,,,
राजकीय महिला चिकित्सालय की मैट्रन सुषमा की कहानी सभी से अलग है। इन्हें नर्स की ड्रेस से लगाव तो हुआ, लेकिन इसकी वजह बनीं इनकी मां,,, दरअसल जब उनकी मां सर सुन्दर लाल अस्पताल बीएचयू में भर्ती थीं, उस दौरान सफेद वर्दी पहने नर्स उनकी मां की सेवा किया करती थीं तभी से उनके मन में एक बात बैठ गई कि इससेअच्छा प्रोफेशन कुछ नहीं हो सकता और उन्हें भी नर्स बनना है। साल 1988 में वह परीक्षा पास कर नर्स बन गईं।
सुषमा का कहना है कि उन्हें ठीक होते मरीजों को देखकर जो सुख-शांति मिलती है, वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती है। यह सिर्फ दिल से अनुभूति की जा सकती है।