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प्रयागराज/नैनी :: एक विलक्षण प्रतिभा के धनी,"सरदार पतविंदर सिंह",, जानिए इनके बारे में
#कई अचंभित सामाजिक कार्यों से मतदान प्रतिशत बढ़ाने में प्रयासरत रहे सरदार पतविंदर सिंह।
# देशप्रेम मे मुंह पर कालिख पोतने में भी रच मात्र संकोच नहीं
# भिक्षा (वचन) मांग कर लोकतंत्र को मजबूत करने का आह्वान,मतदान के गर्भ से ही सरकार का जन्म होता है हमें वचन (भिक्षा)दे कि मतदान के प्रतिशत में बढ़ोतरी जरूर करेंगे।
प्रयागराज/ भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा काशी क्षेत्र, क्षेत्रीय उपाध्यक्ष सरदार पतविंदर सिंह ने पिछले 30 वर्षों से मतदाता जागरूकता अभियान चलाते हुए सरदार पतविंदर सिंह ने मतदाताओं को जागरूक करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पिछले 30 वर्षों से देश के विभिन्न कोने में भ्रमण कर मतदाताओं को जगाने के लिए ग्राम पंचायत स्तर से मतदान अवश्य करें, लोकतंत्र मजबूत करें का संदेश विभिन्न माध्यमों से दिया। जैसे भिखारियों के साथ विभिन्न धार्मिक स्थलों के प्रांगण में बैठकर मत दाताओं को प्रेरित करना, मतदाताओं की चरण पादुका साफ कर, मतदाताओं के चरण धोकर,अपने अर्धनग्न शरीर पर सूक्ति वाक्य लिखकर, दीवार लेखन,चौपाल लगाकर,नंगे पांव पद यात्रा,सबसेआश्चर्यजनक बात मतदाताओं को जागरूक करने के लिए अपने मुंह पर कालिख पोतने में भी रच मात्र संकोच नहीं किया मतदाताओं के बीच में भ्रमण करते रहे, जूते-चप्पलों की माला पहन कर, गधे पर सवार होकर भ्रमण करना। मतदाताओं(युवाओं) के चरण पादुका हाथों में सजो कर( एक कदम-मतदान की ओर)बस एक ही उद्देश्य रहा कि मतदान प्रतिशत बढ़ जाए,जागरूकता के लिए कभी किसी से आर्थिक सहयोग नहीं लिया, ना ही किसी सरकार ने इनके सामाजिक कार्य के लिए सम्मान दिया पिछले 30 वर्षों से मतदाता जागरूकता,जैसे आदि सामाजिक कार्य देशभर में किए।
अविस्मरणीय है सरदार पतविंदर सिंह का देश प्रेम ,,,,,,,
प्रयागराज सहित देश में अपनी प्रतिभा के कारण सामाजिक क्षेत्र के बीच लोकप्रिय सरदार पतविंदर सिंह पुत्र श्री स्वर्गीय भूपेंद्र सिंह ने अपने जीवन के बाल अवस्था,युवावस्था की बसंत पूर्ण कर लिए, प्रयागराज अरैल तहसील के गुरु नानक नगर में जन्मे, दिखावे और पक्षपात से दूर सरल स्वभाव के धनी, "सादा जीवन उच्च विचार" के हिमायती सरदार पतविंदर सिंह सशक्त समाज सेवी हैं। सरदार पतविंदर सिंह से जब भी कोई मिलताहै तो ना जाने क्यों देशभक्ति की धारा इनके अंदर अंकुरित हो जाती है।
सुदूर आयोजनों में भी अपनी उपस्थिति ना केवल दर्ज कराते हैं बल्कि वहां अपनी अमिट छाप छोड़ कर भी आते हैं यह कभी ना थकने वाले, कभी न झुकने वाले, अपनी मंजिल तक पहुंचकर ही रुकने वाले सरदार पतविंदर सिंह कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। और वह सदैव सरल स्वभाव और सदैव सुलभ रहते हैं,जिसका प्रभाव आज भी यहां के आबोह वा में देखने को मिल रहा है या परिलक्षित हो रहा है। सरदार पतविंदर सिंह की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वे स्वयं महत्वकांक्षा से रहित रहकर दूसरों को महत्व प्रदान करते हैं। निजी पहचान बनाने की लालसा से दूर रहकर अपने आसपास जुड़े लोगों को महत्त्व प्रदान करने में रुचि रखते हैं, जो इनको आम से खास बनाती है। बाल अवस्था से ही नियमित सामाजिक जाग रूकता के कार्यों के कार्य सदैव राष्ट्रप्रेम और जन जागृति की अलख जगाते रहते हैं, सामाजिक सेवा में सदैव राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होकर निर्लिप्त भाव से जो सेवा कर रहे हैं वह अविस्मर णीय हैं। मानव समाज को समृद्धिशाली बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं
भारत में एक ऐसा सिख (सरदार पतविंदर सिंह) जो पिछले 30 वर्षों से मांग रहा है भिक्षा,,,,,,,
भारत देश के उत्तर प्रदेश प्रांत जिला प्रयागराज के नैनी क्षेत्र में रहने वाले एक सिख जो पिछले 30वर्षों से देश केविभिन्न धार्मिक स्थलों, प्रमुख चौराहों पर भिक्षा मांगते देखा जा सकता है, उनका भिक्षा मांगने का तरीका एकदम अलग और अनोखा है।
देशभक्ति से लबालब बचपन से ही समाजमें सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करने का कार्य करने वाले संपन्न घराने से ताल्लुक रखने वाले को ऐसा जुनून चढ़ा देशभक्ति का, की भिक्षा मांगने के मार्ग पर चल दिया। भिक्षा भी ऐसी कि अपना पेट या अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि लोक तंत्र को मजबूत करने की भिक्षा।
आज भिक्षा मांगते मांगते इस सिख को पता ही नहीं चला, कि अब तक लोकतंत्र के कितने ही (उत्सव महापर्व) बीत गए, समय के चक्र के साथ ही इस सिख युवक का बचपन, जवानी बीत गई और वृद्धावस्था की ओर अग्रसर हो गए, किंतु आज भी भिक्षा मांगना नहीं छोड़ा। भिक्षा मांगने के कारण ही इन्होंने विवाह नहीं किया।
"केसरी न्यूज़ 24" प्रतिनिधि को उन्होंने बताया कि,पता नहीं कैसी अर्धांगिनी मिले, जिसे हमारा भिक्षा मांगना अच्छा ना लगे और देश भक्ति की मुहिम लोकतंत्र को मजबूत करनेकी जनजागरूकता अधूरी ना रह जाए इसलिए मैने विवाह व सांसारिक बंधन से मुक्त रहना ही उचित समझा।