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सूडान से लौटी सुष्मिता ने कहा- रात के अंधेरे में तड़तड़ा रही थीं गोलियां,उम्मीद नहीं थी लौटेंगे घर, किसी तरह बची जान,,,।

सूडान से लौटी सुष्मिता ने कहा- रात के अंधेरे में तड़तड़ा रही थीं गोलियां,उम्मीद नहीं थी लौटेंगे घर, किसी तरह बची जान,,,।


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सूडान से वापस भारत लौटे वाराणसी की सुष्मिता दास की कहानी ::: उन्ही की जबानी :::। 

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रात के अंधेरे में जब गोलियां तड़तड़ा रही थीं तो हम बस भगवान से सकुशल भारत लौटने की प्रार्थना कर रहे थे। मिसाइल और बम की आवाजें रात के अंधेरे में और ज्यादा डरा रही थीं।पानी, बिजली और इंटरनेट की सप्लाई बंद हो जाने के कारण तो सबसे संपर्क ही समाप्त हो गया था। ऐसा लग रहा था कि अब शायद ही यहां से बचकर निकल पाएंगे। 

सूडान के खारतूम से वाराणसी लौटीं सुष्मिता दास उस मंजर को याद करके सिहर उठती हैं। सोनारपुरा निवासी सुष्मिता ने बताया कि 15 अप्रैल को जब लड़ाई शुरू हुई तो, हम लोगों को लगा कि यह तो आए दिन होता रहता है, लेकिन 16 और 17 को हमले बढ़ गए। हम जिस बिल्डिंग में रहते थे, वहां के स्थानीय लोग पूरी बिल्डिंग छोड़कर दूसरी जगह चले गए। 

ऐसे में हमें अपनी कंपनी के अस्पताल में शरण लेनी पड़ी। अस्पताल पर भी रिबेल ग्रुप ने कैप्चर कर रखा था। फिर हमने अस्पताल भी छोड़ दिया। फिर हमें भारतीय समुदाय के लोगों ने अपने यहां शरण दी। 24 अप्रैल को इंटरनेट बंद हो गया। हम जहां रह रहे थे, उन लोगों की कंपनी ने उनको वहां से बाहर निकलने में मदद की।

कंपनी के प्रयास से हम एंबेसी तक पहुंचे। 27 अप्रैल को हमें सऊदी अरब रवाना किया गया। भारत सरकार ने जो मदद की, उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। मुझे तो एक पल को ऐसा लगा था कि, अब हम लोग यहां से जिंदा निकल ही नहीं पाएंगे।

भारत सरकार की मदद से मैं अपने घर पहुंच सकी हूं। इसके लिए भारत सरकार को कोटि-कोटि धन्यवाद देना चाहती हूं। घर पर मां विपाशा दास और पिता प्रकाश दास भी बेहद चिंतित थे। अब सबके साथ मिलकर ऐसा लग रहा है जैसे मानो मुझे नई जिंदगी मिली हो।