खेलो इंडिया न्यूज
Khelo India : बनारस आईं इन महिला पहलवानों की कहानी बेहद अनोखी, मेहनत से ओलंपिक की राह हो रही आसान,,,।
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स आज हर खिलाड़ी के लिए बड़ा अवसर बन रहा है। वाराणसी में हो रहे यूनिवर्सिटी गेम्स मेंशामिल पहलवानों का कहना है कि इससे उनकी प्रतिभा को पहचान मिल रही है और ओलंपिक की राह भी आसान हो रही है।
कुश्ती प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने आईं महिला पहलवानों की कहानी भी अनोखी और प्रेरणा दाई है। दूसरे दिन बुआ भतीजी ने दांव से पदक प्राप्त किया तो अंतरराष्ट्रीय मेडल पाने वाली पहलवान अपना दांव लगाने की तैयारी में हैं।
बेटी को पहलवान बनाने के लिए पिता ने छोड़ दिया गांव ,,,,,,,
हरियाणा के सिरसा के बानी गांव की बेटी सिमरन ने पहली बार खेलो इंडिया में हिस्सा लिया और रजत पदक से अपना खाता खोला।और बेटी की प्रतिभा को निखारने के लिए पिता प्रदीप कुमार ने घर बार सब छोड़ दिया। गांव से दूर हिसार में अपनी इकलौती बेटी को बीते साढ़े चार साल से कुश्ती का प्रशिक्षण दिलवा रहे हैं।
पिता प्रदीप का कहना है कि गांव में उतनी सुविधा नहीं है। बेटी के ओलंपिक में जाने के सपने को पूरा करने के लिए अपना घरऔर काम सब छोड़ दिया। सिरसा से हिसार आ गया। गांव में बड़े भाई खेती कर रहे हैं और मैं बेटी को पहलवानी करा रहा हूं। सिमरन की मां सुमन उसके खाने पीने का ध्यान रखती हैं। सिमरन राष्ट्रीय फेडरेशन कप और रैंकिंग टूर्नामेंट के साथ अखिल भारतीय विश्वविद्यालय कुश्ती प्रतियोगिता में पदक जीत चुकी हैं।
बुआ-भतीजी ने जीते पदक ,,,,,,,
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में एमडीयू यूनिवर्सिटी अंकिता और संध्या बुआ-भतीजी हैं। बुआ अंकिता ने रजत और भतीजी ने कांस्य पदक हासिल कर देश का मान बढ़ाया।हरियाण केसोनीपत की महिला पहलवान की इस जोड़ी ने खेलो इंडिया गेम्स में काफी नाम कर लिया। वहीं जब घर में दो मेडल आए तो परिवार वाले भी खुशी से झूम उठे। साथ आए परिवार के सदस्यों की खुशी देखते ही बन रही हैं।
दोनों खिलाड़ियों ने पहली बार खेलो इंडिया में प्रतिभाग किया। इन महिला पहलवानों का कहना है कि लड़कियों का कुश्ती जैसे खेल में कॅरियर बनाना आसान नहीं होता। लेकिन जब आप मेडल लाते हैं तो लोग साथ देने लगते हैं। संध्या और अंकिता अब ओलंपिक में जाने की तैयारी में हैं।
पड़ोसियों से मिलते थे ताने, फिर भी बढ़ीं आगे ,,,,,,,
दिल्ली की बिपाशा को शुरुआती दिनों में खूब ताने झेलने पड़े। जब बिपाशा ने कुश्ती के लिए अभ्यास शुरू किया तो पड़ोसी ताने देते थे कि लड़की अब अखाड़े में लड़कों के साथ उतरेगी। पुरुष कोच से प्रशिक्षण पर भी लोग सवाल उठाते थे। लेकिन बिपाशा के माता पिता ने उसका पूरा सहयोग किया।
बेटी ने भी तानों को तारीफ में बदलने की जो ठानी तो छह बार अंतरराष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर मेडल लगाया। अब वही पड़ोसी उसकी तारीफ करते नहीं थकते। बिपाशा का कहना है कि,आज हर पहलवान का सपना ओलंपिक होता है। खेलो इंडिया से अवसर मिलने से ओलंपिक की राह आसान होगी। बिपाशा सोमवार को 76 किलोभार में होने वाली प्रतियोगिता में अपना दम दिखाने को तैयार हैं।