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वाराणसी :: नमामि गंगे के सदस्यों ने आदिकेशव मंदिर और परिसर में स्वच्छता अभियान चलाया,,,।

वाराणसी :: नमामि गंगे के सदस्यों ने आदिकेशव मंदिर और परिसर में स्वच्छता अभियान चलाया,,,।

नमामि गंगे के सदस्यों ने बुधवार को आदिकेशव घाट पर और मंदिर परिसर में स्वच्छता अभियान चलाया। मंदिर के साढ़ियों से लेकर गर्भगृह तक साफ सफाई के बाद सदस्यों ने भगवान आदिकेशव की आरती उतारी और मां गंगा की निर्मलता के साथ देश समाज में सुख समृद्धि की कामना की। 


नमामि गंगे के काशी क्षेत्र संयोजक राजेश शुक्ला ने बताया कि आदिकेशव घाट काशी का प्रमुख व प्राचीन विष्णु तीर्थ माना जाता है। आदिकेशव मंदिर के अंग शिखरों से युक्त शिखर पुंज सहज ही ध्यानाकर्षित करते हैं। एक परकोटे में चार मंदिर आदिकेशव, ज्ञानकेशव, पंचदेवता और संगमेश्वर हैं। स्थापत्य की दृष्टि से भी ये मंदिर दर्शनीय हैं। 

उन्होंने कहा कि आदिकेशव तीर्थ का महात्म्य सबसे ऊपर है। आदिकेशव मंदिर का रंगमंडप लाल पाषाण के कलात्मक स्तंभों से समृद्ध हैं। बाहर की दीवारों पर भी सुंदर कारीगरी है। गर्भगृह में आदिकेशव विराजमान हैं। उनके दाईं ओर केशवादित्य हैं। दूसरे मंदिर में ज्ञानकेशव की मूर्ति स्थापित है। नीचे ज्ञानकेश्वर महादेव प्रतिष्ठित हैं। तीसरे मंदिर में संगमेश्वर महादेव के दर्शन हैं जिनकी गणना चतुर्दश आयतनों में होती है। स्कंद पुराण के अनुसार इनका दर्शन कर मनुष्य पाप रहित हो जाता है। चौथा पंचदेवता मंदिर है। जहां एक पीठिका पर विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य, गणेश का अंकन उनके वाहन द्वारा किया गया है। पूस मास में अंतगृही मेला, चैत्र में वारुणी मेला में श्रद्धालु यहां संगम स्नान कर आदिकेशव के दर्शन करते हैं। भादो माह में वामन द्वादशी के दिन भी स्नान होता है। नीचे वामन भगवान का मंदिर भी है। परकोटे के बाहर चिंताहरण गणेश मंदिर है जिसमें गणेश जी के साथ वेदेश्वर, नक्षत्रेश्वर के शिवलिंग विराजमान हैं। 

काशीखंड के अनुसार महादेव के कहने पर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी के साथ मंदराचल से काशी की ओर अग्रसर हुए। वहां पहुंचने पर उन्होंने गंगा-वरुणा संगम स्थल पर निर्मल चित्त से हाथ-पैर धोये व जो वस्त्र पहने हुए थे, उसे पहने हुए ही स्नान किया। भगवान ने प्रथमत: मंगलप्रद अपने चरणद्वय को वहां प्रक्षालित किया। तभी से वह तीर्थ पादोदक नाम से प्रसिद्ध हुआ। लक्ष्मी जी तथा गरुण के साथ आदिकेशव विष्णु ने अपने हाथों से अपनी मूर्ति का निर्माण कर यहां उसकी प्रतिष्ठा, पूजन किया। काशी के सीमांत का यह स्थान श्वेतद्वीप कहा गया है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य पादोदक तीर्थ में स्नान करेंगे, उनका सहस्त्रजनमार्जित पाप शीघ्र नष्ट हो जाएगा। काशीखंड में बिंधुमाधव कहते हैं- श्वेतद्वीप में मैं ज्ञानकेशव नाम से स्थित होकर मनुष्य को ज्ञान प्रदान करता हूं। आदिकेशव घाट काशी का प्रमुख व प्राचीन विष्णु तीर्थ माना जाता है।

राजेश शुक्ला बताते हैं कि मंदिर समूह में संगमेश्वर 18वीं शती के उत्तरार्द्ध व अन्य 19वीं शती के प्रारंभ के हैं। मूलत: आदिकेशव मंदिर का निर्माण गहड़वाल काल में हुआ था। जिसे 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने नष्ट कर दिया था। गहड़वाल काल में आदिकेशव मंदिर बहुत विख्यात था। गहड़वाल शासकों द्वारा मंदिर के नीचे गंगा में स्नान व महादान का उल्लेख भी मिलता है। 1196 ई. में सिराबुद्दीन ने अपनी सेना के साथ इस मंदिर पर आक्रमण किया और लूटपाट और क्षतिग्रस्त करके चला गया। बाद में 18वीं शती में सिंधिया के दीवान भालो जी ने इस मंदिर का निर्माण कार्य कराया। अठ्ठारहवीं शताब्दी में बंगाल की महारानी भवानी ने घाट का पक्का निर्माण कराया था। परन्तु कुछ वर्षों के पश्चात यह क्षतिग्रस्त हो गया जिसका पुन: निर्माण सन् 1906 में ग्वालियर राज के दीवान नरसिंह राव शितोले ने कराया। वर्ष 1985 में तत्कालीन राज्य सरकार ने घाट का मरम्मत कराया था।